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समकित के साथ तप से होगी कर्म निर्जरा: साध्वी कंचनकंवर

समकित के साथ तप से होगी कर्म निर्जरा: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि नमिराजा को परीक्षक इंद्र कहते हैं गृहस्थ आश्रम के कर्तव्यों को पूरा करके फिर संन्यास लेना।

नमिराजा कहते हैं गृहस्थ धर्म में आस्रव बंध के द्वार खुले रहते हैं, यह मकड़ी के जाल जैसा है। जितना धर्मध्यान करना चाहते हैं उतना इसमें कर नहीं पाते हैं, इसमें अनेकों बाधाएं हैं। जितने भी तीर्थंकर हुए हैं उन्होंने श्रावक धर्म नहीं अपनाया सीधे ही संन्यास ग्रहण किया। अज्ञानता में किया गया तप, व्रत का कोई महत्व नहीं होता। ज्ञानपूर्वक सम्यक तप, आराधना ही होती है फलित।

जब तक समकित, बोध प्राप्त नहीं होगा और तप करेंगे तो पुण्य अर्जन हो जाएगा लेकिन कर्म निर्जरा नहीं होती। समकित की चाबी नहीं हो तो अपने घर का ताला भी नहीं खोल सकते। प्रभु कहते हैं 84 लाख जीवा योनियों के बाद मनुष्य भव पाया है, अब भी समकित की चाबी नहीं ली तो पुन: नीचे की ओर जाना पड़ेगा।

जो भी नियम लिया है उसमें समकित होगा तो आत्मिक सुख, आनन्द प्राप्ति होगी। प्रभु महावीर ने तपस्या प्रधान देशना दी है। नवपद आराधना में पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और तन्मयता से आयंबिल का शारीरिक मानसिक तप करें तो शांति बनी रहे, रोगों का शमन और मनोबल वृद्धि व असंभव भी संभव होता है।

साध्वी उन्नतिप्रभा ने कहा कि व्यक्ति जैसा करता है वैसा ही उसे फल मिलता है। जो संतों के चरणों में झुकते हैं उनके सारे पाप झुक जाते हैं। संतों की देशना कल्याण के लिए होती है। वह दीपक की तरह पापअंधकार को दूर करती है।

मैनासुंदरी का पिता उसका विवाह कुष्ठरोगी श्रीपाल से करता है लेकिन वे दोनों गुरुभगवंत की बताई नवपद आराधना आयंबिल तप से करते हैं और उसका कुष्ठरोग क्षय होकर शरीर दैदीप्यमान बनता है। उन्हें आरोग्य, सुख-समृद्धि, यश प्राप्त होता है। मैनासुंदरी नवपद आराधना से सभी  ७०० कुष्ठरोगियों के दल का रोग भी क्षय करती है। नवपद आराधना के प्रभाव से उनके समस्त परिजन मिलते हैं।

नवपद की आराधना से व्यक्ति को रोग, शोक, डाकिनी, शाकिनी एवं समस्त बाधाएं दूर होकर मान-सम्मान, संतान, समृद्धि सहित सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जहां पर संत जाते हैं वहां पर पुष्प के पास भ्रमर की तरह श्रावक आ ही जाते हैं। दान धर्म का प्रथम प्रकार है। दान देते समय विचार न करें कि उसका क्या होगा। रिश्ते-संबंध पौधों की तरह हैं, इन्हें भी प्रेम, विश्वास और सहयोग के खाद-पानी की जरूरत होती है तभी फलते-फूलते हैं।

तीन प्रकार के मनुष्य हैं- पहले जिसका नाम उसके पिता के नाम से जाना जाए वे उत्तम, दूसरे वे जिनका नाम उनके मामा के नाम से जाना जाए वे मध्यम और तीसरे वे जिनका नाम उनके ससुर के नाम से जाना जाए वे निकृष्ट कहलाते हैं। धर्म ही सदा रक्षा करता है। नवपद के प्रभाव से जीवन का अंधकार दूर होता है। साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने पुच्छिशुणं सम्पुट साधना तथा विवेचन कराया।

धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने उपवास, आयंबिल आदि तपस्याओं के पच्चखान लिए। एपीएल प्रतियोगिता की टीमों को पुरस्कार दिए गए। किशोर चोरडिय़ा ने नवपद आराधना की महिमा बताई और गीतिका प्रस्तुत की और कल्याण चोरडिय़ा ने अपने भाव रखे और भजन प्रस्तुत किया। धर्मसभा में चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों सहित अन्य स्थानों से भी श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। रात्रि ८ से ९ बजे तक नवकार महामंत्र का सजोड़े जाप किया गया।

नवपद ओली की आराधना 13 सितम्बर तक चलेगी। 8 अक्टूबर से उत्तराध्ययन सूत्र आराधना की शुरुआत होगी। शरद पूर्णिमा पर 14-15 सामायिक के साथ रात्रि जागरण तप-आराधना होगी।

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