वीरपत्ता की पावन भूमि आमेट के जैन स्थानक में साध्वी विनित रूप प्रज्ञा ने संसार भावना को समझाते हुए कहा संसार भावना’ का तात्पर्य चार गतियों – मनुष्य, तिर्यंच (पशु, पक्षी आदि), नारकी (नारकीय प्राणी) और देवता (स्वर्गीय प्राणी) में आत्मा के इस दुःखपूर्ण आवागमन का चिंतन करना है और प्रमुख विषय पर आगे विचार करना है – “मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्र से कब मुक्त होऊंगा; मुझे सच्चा सुख और आनंद कब मिलेगा?”
‘संसार भावना’ पर चिंतन करने से साधक को स्वयं का ब्रह्मांड के साथ संबंध समझने में मदद मिलती है और यह एहसास होता है कि धन, शक्ति, कामुक सुख और अन्य सभी भौतिकवादी चीजें सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं। सच्ची खुशी भौतिक दुनिया से लगाव से नहीं, बल्कि वैराग्य से आती है।
इस भावना का निरंतर चिंतन करने से हमें यह विचार करने की प्रेरणा मिलती है कि क्या हम संसार में हैं या संसार हमारे भीतर है? हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि संसार में रहने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन संसार को अपने भीतर न रहने दें।
जिस प्रकार नाव तब तक किनारे तक पहुँच सकती है जब तक बाहर पानी है, लेकिन अगर अंदर पानी है तो वह डूब जाएगी। उसी प्रकार सांसारिक वस्तुओं और सुखों से वैराग्य साधक को संसार रूपी सागर से पार उतरने और अंतिम लक्ष्य – मोक्ष तक पहुँचने में सहायता करता है ।
मिडिया प्रभारी मुकेश सिरोया ने बताया कि साध्वी आनंद प्रभा, साध्वी चंदन बाला ने भी अपने उद्बोधन दिए । इस धर्म सभा में मुंबई से श्री संघ एवं नाथद्वारा से श्री संघ पधारा आमेट संघ ने सबका शाल-माला से स्वागत किया । इस धर्म सभा का संचालन ललित डांगी ने किया ।