~जो मानव जगत् के सभीजीवों के प्रति स्नेहभाव, क्षमाभक से भरपूर है वो जैन है।
~क्षमा मागने से भी ज्यादा मूल्यवान क्षमादेना है।
~हमारी आत्मा को राग-देष-अहंकार रूपी गलतभावो में नहीं जाने देना यह सेर्वश्रेष्ठ अहिंसा है।
~प.पू.विरलविभूति प्रभु श्रीमद्ध विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी दादा ने जगत् के सभी जीवों की आत्मा का कल्याण,समाधि,सुख की भवित की थी इसीलिय वो विश्वपुण्य बने थे।
~अज्ञान आधारित धर्म भी केवल पुण्य ही दे सकता है किन्तु निर्जरा,शुद्धि नहीं ही दे सकता है।
~जो मानव स्वयं के जीवन में जीवदया का पालन सम्यक् रूप से करता है उसके जीवनमें कभी भी दुःख,रोग,दर्द आ नहीं सकते।
कोई भी पाप का क्षय करना होतो ज्ञानदशा की श्रेष्ठाता अति आवश्यकता है।
~यदि हमारे जीवन में सभी क्रिया में जयणा है तो पाप का बंध होगा ही नहीं क्योकि जयणा ही आत्मा का परमधर्म है।