चेन्नई. सभी दानों में अभयदान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सब कुछ हम दे रहे हैं, फिर भी सामने वाला यदि भयभीत है तो हमारा दिया हुआ समस्त दान निष्फल चला जाता है। यदि हम किसी को जीवनदान दे नहीं सकते, तो किसी को मारने का अधिकार भी हमें नहीं है।
साहुकारपेट स्थित राजेंद्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य एवं भारतीय संस्कृति संरक्षण समिति के तत्वावधान में श्री वि_ल नामदेव समाज ट्रस्ट द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। इस मौके पर मुनि संयमरत्न विजय ने कहा हमारे द्वारा किया गया रक्तदान किसी के लिए जीवनदान बन सकता है।
वस्त्र दान, अन्न दान और धन दान तो धनवान कर सकता है, लेकिन जीवन में एक बार दिया जाने वाला नेत्र व अंग दान सामान्य लोग भी कर सकते हैं। जीते-जी हम काम आए या न आए लेकिन हमारे जाने के बाद भी हम किसी के लिए काम आ सके इसके लिए रक्तदान जैसे शिविर लगाए जाते हैं।
जिस प्रकार वृक्ष कभी भी अपने फल नहीं खाते, नदियां कभी भी अपना जल नहीं पीती और गाय रुखा-सूखा खाकर भी हमें दूध देती है, उसी तरह महापुरुष, सज्जन पुरुष कभी भी अपने लिए नहीं जीते। हमें भी सबके लिए जीना है। रक्त दान है प्राणी पूजा, इसके जैसा दान न दूजा।रक्त के रिश्ते ही हमें सशक्त बनाते हैं। बिना रक्त के रिश्ते एक दूसरे से विभक्त जैसे दिखते हैं। अपने लिए कभी नहीं मांगना चाहिए किंतु यदि परमार्थ का कार्य हो तो हमें मांगने में शर्म नहीं करनी चाहिए।