वेलूर. यहां शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा मानवीय मन अति चंचल होता है। अनुकूलता, प्रतिकूलता, संयोग-वियोग, सुख-दुख आदि विभिन्न परिस्थितियों में भी मन तरंगित हुए बिना नहीं रहता। बाह्य संयोग एवं परिस्थितियों के परिवर्तन के साथ ही मन के विचार बदलते रहते हैं।
मनुष्य सभी जीवों के साथ मैत्री भाव रखें। यही धर्म का मूल है। जैसे मूल के अभाव में वृक्ष अस्तिव संभव नही है, वैसे मैत्री के अभाव में हमारे जीवन में धर्म का अस्तित्व भी संभव नहीं है। मैत्री की नींव पर ही जीवन में सद्धर्म की स्थापना हो सकती है। मनुष्य में जितना राग द्वेष को कम होगा उतना ही आत्म विकास बढ़ेगा।