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ज्ञान वाणी

सभी को तीर्थ बनानेवाले तीर्थंकर के साथ जुड़ें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

सभी को तीर्थ बनानेवाले तीर्थंकर के साथ जुड़ें:  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. बुधवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि चैतन्य की शक्ति जब जाग्रत होती है तो उसे वीर्य और शरीर की शक्ति जाग्रत होती है उसे बल कहते हैं। जिस प्रकार दादा से ज्यादा खुशी पोते के पास होती है। क्योंकि उसके पास बल कम लेकिन खुशी ज्यादा होती है उसी प्रकार वीर्य की शक्ति बल से ज्यादा होती है। परमात्मा का आत्मीय वीर्य शक्ति इतनी परिपूर्ण थी कि देवताओं को भी उनके आभा मंडल में आकर आनन्द की अनुभूति होती है। देवताओं के पास बल बहुत होता है लेकिन वीर्य नहीं।

जिसकी आत्मीक शक्ति पंडित वीर्य की होती है उनसे सपने में भी गलत काम नहीं होता है

परमात्मा का आत्मीय वीर्य शक्ति इतनी परिपूर्ण थी कि देवताओं को भी उनके आभा मंडल में आकर आनन्द की अनुभूति होती है। देवताओं के पास बल बहुत होता है लेकिन वीर्य नहीं।

जिसकी आत्मीक शक्ति पंडित वीर्य की होती है उनसे सपने में भी गलत काम नहीं होता है, जिसकी शक्ति बालवीर्य की हो उससे सपने में भी अच्छा काम नहीं होता है और जो बालपंडित वीर्य वाली शक्ति का होता है वह कभी अच्छा कभी बुरा बनता है।

साधना होती है पंडित वीर्य शक्ति से, ज्ञान से नहीं। यदि एक बार व्यक्ति में यह शक्ति जाग्रत हो जाए तो कोई कर्म उसके सामने टिकता नहीं है। पंडित वीर्य शक्ति वाले को निंदा करने में नींद आती है और मूर्खों का वीर्य हो तो धर्मकार्य में भी प्रमाद आता है।परमात्मा की आत्मीक वीर्य शक्ति सुमेरु पर्वत के समान है। जब उन्होंने एक प्रतिमा स्वीकार की कि मेरी पलक भी न झपकेगी। संगमदेव ने कितने ही प्रयास किए लेकिन वह उनकी पलक भी झपका नहीं सका।

परमात्मा की आत्मीक वीर्य शक्ति सुमेरु पर्वत के समान है। जब उन्होंने एक प्रतिमा स्वीकार की कि मेरी पलक भी न झपकेगी। संगमदेव ने कितने ही प्रयास किए लेकिन वह उनकी पलक भी झपका नहीं सका।

कुझ लोग बाधाओं को देखकर काम शुरू ही नहीं करते, कुछ काम शुरु तो करते है ंलेकिन बाधाओ ंको देखकर काम बीच में छोड़ देते हैं और तीसरे वे उत्तम पुरुष होते हैं जो किसी भी बाधाओं के कारण काम बीच में नहीं छोड़ते, वे ही मंजिल को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार बच्चों के पास बैठने पर थकान दूर हो जाती है क्योंकि उनमें उल्लास

जिस प्रकार बच्चों के पास बैठने पर थकान दूर हो जाती है क्योंकि उनमें उल्लास, खुशी और निर्दोष प्रसन्नता की असीम ऊर्जा होती है। जिनमें उत्साह हो उन्हें काम करने में पसीना आता है लेकिन चेहरा नहीं मुरझाता है। शरीर में बल होना या नहीं होना कर्म के आधीन हो सकता है लेकिन खुशी होना या नहीं होना यह अपने हाथ में है।

जिसके पास पंडित वीर्य शक्ति हो वह स्वयं कभी उलझता नहीं है। इसलिए देवता भी उनके चरणों में आकर अपने को सौभाग्यशाली बनाते हैं।

सुधर्मास्वामी कहते हैं कि परमात्मा की अक्षय प्रज्ञा सभी के साथ स्वयं के भी समृद्धि, सुरक्षा और कल्याण की है। वे उपद्रवों में भी उपकार छिपा हुआ देखते हैं। वे जहां भी गए सभी को समृद्ध करते चले गए। सभी मन में भावना लाएं कि अपने पास कोई आकर बैठे तो उसे आनन्द का अहसास हो

सभी मन में भावना लाएं कि अपने पास कोई आकर बैठे तो उसे आनन्द का अहसास हो, उसे खुशी की अनुभूति हो, उसकी थोड़ी थकान उतर जाए। ऐसा हो जाए तो आपका जीवन धर्म मार्ग पर प्रशस्त हो जाए।

यदि परमात्मा से भौतिक इच्छा से जुड़ेंगे तो वह पूरी हो जाएगी, उनकी साधना से जुड़ेंगे तो स्वर्ण के समान बन जाएंगे और यदि तीर्थंकर स्वरूप से जुड़ते हैं तो हीरे के समान बन जाएंगे। परमात्मा अपने दगा देनेवाले को भी अमृत देते हैं, परेशान करने वाले को भी गौरव के शिखर पर पहुंचाने की उनकी जाति है।

माया किसी को मिलती नहीं चाहे कितना ही उसके पीछे दौड़ो। यह संसार एक ऐसा सपना है जो दिखता है लेकिन मिलता कभी नहीं और भगवान ऐसे सत्य हैं जो दिखते नहीं लेकिन मिलते अवश्य हैं। सुधर्मास्वामी एक बच्चे के समान बनकर परमात्मा के साथ रहते हैं, अहंकार लेकर कोई परमात्मा के समवशरण में नहीं जाता है। परमात्मा के समवशरण में जाना है तो दुनिया के सभी बंधनों को छोड़

परमात्मा के समवशरण में जाना है तो दुनिया के सभी बंधनों को छोड़, निर्लेप होकर जाएं। अपने जीवन में परमात्मा के संघ और शासन में ऐसे रहें कि अपना अहंकार छोड़ दें।

अपने घरों में पुच्छीशुणं की वर्षा सदैव करते रहें, यह पंचम गंधर्व सुधर्मास्वामी द्वारा गंधर्व लब्धि के साथ रचा हुआ स्त्रोत है, इससे कुछ भी असंभव नहीं है। जो सभी को तीर्थ बनानेवाले तीर्थंकर हैं उनके साथ जुड़े रहें।

23 नवम्बर तक उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन का कार्यक्रम निरंतर चलता रहेगा और 24 नवम्बर को सुबह 6.15 बजे सामूहिक भक्तामर पाठ के साथ चातुर्मास स्थल से विहार होगा। धर्मसभा में मुनि तीर्थेशऋषि के सांसारिक मातापिता उपस्थित रहे जिन्होंने अपने इकलौते पुत्र को जिनशासन को समर्पित किया है। साथ ही साथ बेंगलोर से चिकपेट शाखा महिला मंडल के सदस्य भी उपस्थित रहे।

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