श्री विवेकानन्द विद्या मन्दिर श्रीपेरम्बदूर में जनमेदनी के साथ विद्यार्थीयों को अध्यात्म विद्या गुरू श्री महाश्रमण ने विद्यार्थीयों को, विद्यालय शिक्षा के साथ, आध्यात्मिक विद्या को जीवन में अंगीकार करने की प्रेरणा देते हुए कहा, कि ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का समावेश हो| सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति ऐसे संस्कारों का पुष्टीकरण हो, तो विद्यार्थीं और ज्यादा अच्छे बन सकेंगे|
एक और वे ज्ञान से सक्षम बन जाये, विद्या सक्षम बन जाये, तो दूसरी ओर उनके संस्कार, आचार, विचार ये भी अच्छे, उन्नत हो जायेंगे| श्रुत और शील, ज्ञान और आचार दोनों का विकास होने से विद्यार्थीं अच्छे, योग्य अर्ह बन सकते हैं| तो अपेक्षा है, कि विद्या संस्थानों में अध्यात्म विद्या का भी प्रभाव रहे, बताई जाएं, तो विद्यार्थीयों का जीवन भी अच्छा बन सकता हैं|
आचार्य श्री ने कहा कि हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, मन| यह दुनिया में सबसे गतिशील होता हैं| सद्विचारों से, कल्याणकारी संकल्पों से मन सुमन संज्ञा वाला बन सकता हैं, तो बुरे विचारों से मन दुर्मन संज्ञा वाला बन जाता हैं| मन के द्वारा आदमी दु:खी, परेशान भी हो जाता है, तो वह अच्छे विचार सुखी भी बन जाता हैं| मन प्रमत्त बनता है, तो पर्वत के शिखर की तरह दु:खी बन जाता हैंऔर मन वश में रहता है तो सुखी बन सकते हैं|
आचार्य श्री ने कहा कि प्रेक्षाध्यान पद्धति में एक प्रयोग आता है, भाव क्रिया| यानि हमारा मन, जो हम कार्य कर रहे हैं, उसी में संलग्न रहे| अनावश्यक इन्द्रिय विषयों में न लगे | जैसे चलते समय ध्यान मात्र चलने पर रहे, चलते समय न गीत गाये, न पुस्तक पढ़े | साधु के लिए तो विधान हैं कि चलते समय, साथ में चलते हुए श्रावक से तत्व ज्ञान की भी चर्चा न करे|
इस तरह चलने से मन स्थिर हो जायेगा, यह भाव क्रिया हो जायेगी| इसी तरह अन्य और भी कोई कार्य जैसे खाना, पीना, पढ़ाई करना इत्यादि हर कार्य भाव क्रिया से करने से मन चंचल नहीं होता है|
आचार्य श्री ने मन की एकाग्रता के लिए दूसरा प्रयोग बताते हुए कहा कि दीर्घश्वास प्रेक्षा में लम्बा – गहरा श्वास लेने और छोड़ने से भी मन की एकाग्रता बढ़ती हैं | जप के साथ भी श्वास को जोड़ने से जप भी सध जाता हैं| मन का काम है स्मृति, कल्पना और चिन्तन करना|
आचार्य श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि हम प्रेक्षाध्यान की साधना से मन की गति को कम कर सकते हैं|
मन की एकाग्रता के लिए शरीर की स्थिरता जरूरी हैं| ध्यान में पहले शरीर को स्थिर, शिथिल कर, फिर मन को एकाग्र बनाने की साधना की जाती हैं| मन में कोई भी तरह के विचार आते रहते हैं, लेकिन हमें हर विचारों के साथ नही जुड़ना चाहिए| हमारे मन में सबके प्रति मंगलकामना हो, पवित्र भावना हो, तो हम भी पवित्र बने रह सकते हैं |
मन की चंचलता को महाप्राण ध्वनि से कम किया जा सकता हैं, स्वयं आचार्य श्री ने इसका प्रयोग भी करवाया | आचार्य श्री ने विद्यार्थीयों को नशामुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दी| झूठ, चोरी इत्यादि बच कर ईमानदार के पथ पर चलने का आह्वान किया | लड़ाई, झगड़ा, हिंसा, बुरी भावना से बच कर सद्भावना मय जीवन जीने का संदेश दिया | अहिंसा की भावना विकसित होने से जीवन सुन्दर बन सकता हैं|
मुनि श्री अनेकांतकुमारजी ने अहिंसा यात्रा की अवगति देते हुए त्रिसुत्रों को तमिल भाषा में जानकारी दी| आचार्य श्री ने विद्यार्थीयों को संकल्प ग्रहण करवाएं| विद्यालय के चेयरमैन श्री वैलमई ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया|
मुख्य अतिथि तिरूपति आश्रम श्री प्रेमा पाडुरंग ने कहा कि लोगों के भटकाव को कम करने के लिए ही साधु संत विचरण करते हैं| संत लोग अपने पुण्य को हममें बांट देते हैं और भगवान की वाणी हमको सुनाते हैं| इस अवसर पर जीया सोलंकी, लुपुद सोलंकी, श्री महावीर नवयुवक मण्डल से स्त्रोत, सुनीता सोलंकी, श्री धरमचन्द सोलंकी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी | महिला मण्डल ने स्वागत गीतिका की प्रस्तुति दी | विद्यालय के चेयरमैन एवं प्रेमा पाडुरंग को आचार्य श्री महाश्रमणजी का तमिल भाषा में अनुवादित साहित्य भेट किया गया | कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया |
इससे पूर्व प्रात:काल सविता इंजीनियरिंग कॉलेज से विहार कर श्री विवेकानन्द विद्या मन्दिर पधारने पर विद्यालय परिवार और क्षेत्र वासियों ने भावभिना स्वागत किया|
✍ मीडिया प्रभारी
तेरापंथ युवक परिषद्, चेन्नई
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति