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सब गुणों का मुख्य द्वार विनय है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

सब गुणों का मुख्य द्वार विनय है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केसरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में आत्मा के विनय गुण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सब गुणों का मुख्य द्वार विनय है। यह गुण तीर्थंकर बनने के बाद भी अपनाते हैं। तीर्थंकर परमात्मा के दो तरह के विनय होते हैं, पहला कृतज्ञता के रूप में अशोक वृक्ष की तीन प्रदक्षिणा देना। परमात्मा को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त होता है, उसी वृक्ष की रचना उनके समवसरण में होती है। दूसरा है तीर्थ को शिक्षा देने का विनय।

श्रमण- श्रमणियों का विनय उत्कृष्ट गुणवत्ता का बताया गया है। साधु के विनय के तीन स्वरूप होते हैं पहला, वह आचार्य की आज्ञा का पालन करे, दूसरा वह गुरु की आंखों का इशारा समझे और तीसरा, वह गुरु के समीप रहे। गृहस्थ में ऐसा विनय कभी देखने को नहीं मिलता। गृहस्थ अपेक्षा भी अस्थानीय रखते हैं। विनय करने वाले शिष्य के दो लक्षण होते हैं, पहला, जो संसार के संयोगों से रहित होकर गुरुशरण में आए। उन्होंने कहा संसार के विनय में अपेक्षाएं एवं स्वार्थ रहते ही है। अपेक्षाओं और स्वार्थ के विनय में गुणवत्ता नहीं आ पाती, इसलिए बताया गया है कि संयोगों से मुक्त आत्माओं का विनय उत्कृष्ट होता है।

मुनि का दूसरा विनय है घर का त्याग। कुछ धर्मी ऐसा मानते हैं कि संन्यास के बाद साधु घर में रह सकते हैं लेकिन घर तो संयोगों की राजधानी है। इसलिए जैन दीक्षा के पहले घर का त्याग बताया गया है, फिर ही रजोहरण और साधु वेश मिल सकता है। घर और दीक्षा का मिश्रण कभी नहीं हो सकता। साधु भिक्षा के माध्यम से ही अपना जीवन चलाए। जो परिग्रह ज्यादा रखता है, वह जैन साधु हो ही नहीं सकता। साधु का एक नाम कुक्षीसंबल है। संबल यानी भोजन। पेट भरे, उतना ही भोजन लेना, उसे कुक्षीसंबल कहते हैं।

आचार्यश्री ने कहा मोक्ष का दूसरा नाम अपवर्ग होता है। अपवर्ग यानी जहां पाप और भव परंपरा का अंश ही न हो, मोक्ष के बाद कोई फल बाकी नहीं रहता यानी फल की सारी आकांक्षाएं समाप्त हो जाती हो, सारे भय से मुक्त और सारे मोह टूट चुके हो। गुरुदेव ने कहा पतन, बंधन, फल की आकांक्षा, मोह, मर्यादा बिना का सुख जहां होते हैं, उसे मोक्ष कहते हैं।

मोक्ष को सिद्धशिला, निवृत्ति, अपवर्ग, अकर्म अवस्था आदि नामों से परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा हमारा जितना उत्तम लक्ष्य है, उतने ही उत्तम लक्षण होने चाहिए। विनय का गुण लाने पर अभिमान टूटता हैं। इसके प्रभाव से देवता भी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उन्होंने कहा यदि विनय न हो तो धर्मी लोगों का अधर्म धर्म से ही शुरू होता है।

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