चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा जो राग द्वेष से परे होते हैं उनका कल्याण स्वत: ही हो जाता है। स्वयं की भावना को जानने के बाद ही मनुष्य राग द्वेष की भावना से दूर हो सकता है।
जब तक स्वयं को नहीं समझेंगे इससे दूर होना संभव नहीं है। मनुष्य को सबके प्रति एक जैसी भावना रखनी चाहिए। बुरा मनुष्य होने पर भी उससे द्वेष नहीं करना चाहिए। जो अपने साथ दूसरों के कल्याण का विचार करेगा उसके कल्याण में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी। प्रवचन में खुद का कल्याण करने के साथ एक दो व्यक्ति को लाना भी चाहिए। क्या पता कौन सा शब्द किसका जीवन बदल दे।
साध्वी समिति ने कहा कि सतियों के जीवन चरित्र को देखने के साथ उनके जैसा जीवन जीने का प्रयास करने से जीवन मे बदलाव होगा। उनको याद करने मात्र से जीवन मे बदलाव संभव नहीं हो सकता, बल्कि सम्यकत्व की प्राप्ति के लिए उनके गुणों को अपनाने की जरूरत है।
नारी में सहने की शक्ति अपार होती है और सहनशीलता की वजह से ही समाज में उनका पुरुषों से ज्यादा सम्मान होता है। स्त्री को उसकी सहनशीलता की वजह से प्रतिमूर्ति कहा जाता है। गुरु के गुणों को आचरण में लाने से जीवन बदलता है।
कोई भी बात को अगर ठान लिया जाए तो सफल होने से कोई रोक नहीं सकता, पर मान लिया जाए तो कोई सफल बना भी नहीं सकता। कोशिश करने वालों को कुछ मिले या न मिले पर लक्ष्य बना कर काम करने वाले हमेशा सफल होते हैं। गुरुवार को 48 दिवसीय भक्तामर अनुष्ठान का समापन समारोह होगा।