सर्वप्रथम महिला मंडल की सदस्याओं ने महासती चंदनबाला के जीवन पर बहुत ही सुंदर नाटिका प्रस्तुत की।
तत्पश्चात गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि हमारा यह महान पर्युषण पर्व के दिन घटते जा रहे है कहते है, जैसे-2 गाड़ी आगे बढ़ती है वैसे -2 वेग बढ़ता है। वैसे ही धर्म में आपको उत्कृष्टता आनी चाहिए ज्ञानी जन कहते है आपको कमर कस अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए क्योंकी यह अवसर बीत गया तो सिर्फ पश्चाताप ही रहेगा।
इन दिनों भी यदि आप धर्म ध्यान तपस्या नही करोगे तो ये पर्व कोरा – 2 चला जायेगा। आप लाभ से वंचित रह जाओगे । ज्ञानी जन कहते है कि हम मोक्ष जा पायें या न जा पाये पर मोक्ष के निकट तो जा ही सकते हैं। जब पुण्यवान बढ़ेगी तो अवश्य आप संसार छोड़ मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ जाओगे! संसार में लगी आत्मा में वैराग्य का रंग चढ़ने से एक दिन वह आत्मा धर्म मार्ग में बढ़ेगी। आज जमाना बदलाव का है रहन-सहन, खान पान सब बदल सकती है पर धर्म में बदलाव नही हो सकता क्योंकि ये शाश्वत धर्म है ये जैन धर्म भौतिक साधनों से रहित है ये पांचवे आरे के अन्त तक ऐसा ही रहेगा। धार्मिक वेश कभी नहीं बदलेगी 32 आगम सूत्र भी ऐसे ही रहेंगी भले ही संविधान बदल जाये, पुस्तकें बदल जाये पर आगम सूत्र नही बदलेंगे।
भगवान कहते हैं व्यसन हमारे जीवन में कभी नही आना चाहिए जो श्रावक व्यसन से दूर रहता है वही आगे जाकर दीक्षा लेकर अच्छे धर्माचार्य बनेगें अच्छे धर्म ध्यान चले इसके लिए श्रावक को उत्तमता को प्राप्त करना चाहिए। श्रावक के पुरुषार्थ को पराक्रम को कम न समझो। इन आठ दिनों में आप पुरुषार्थ करो। यदि ज्ञान सिर्फ सीखोगे जीवन में नहीं उतारोगे तो उसमें रुचि नहीं रहेगी।
कंठस्थ ज्ञान ज्यादा दिनो तक नहीं टिकता पर यदि अनुपेक्षा कर जीवन में आयेगे तो वह आगे के भवो में साथ चलता है ज्ञान भव सागर पार कराने वाली वाला नाव है। ये पर्युषण के साथ का आज का दिन कहता है कि सप्त व्यसनों से मुक्त बनो। यदि जीवन में व्यसन आ गया तो इसका त्याग करो और यदि व्यसन नही करते हो तो भी त्याग करो व्यसन से तन, मन, वाणी बिगड़ जाते है जिससे परिवार, समाज भी बिगड जाते है। भगवान कहते हैं किसी की भी आदत नहीं होनी चाहिए।
गुटखा, तम्बाकु, किमाम खाने वाला जानता है कि ये विष है इसलिए संकल्प करो कि इस व्यसन का त्याग करो। भगवान् कहते है व्यसन आदि होने से करोड़पति भी दुसरो के आगे तम्बाकू गुटखे के लिए हाथ फैलाने लगते हैं।
जिस कुव्यसन से तड़प कर मरना पड़े तो ऐसा व्यसन क्या काम का? व्यसन करने वाले की संतान के लिए भी व्यसन का द्वार खुल जाता है। व्यसन करने वालो से युक्त समाज, देश कभी आगे नही बढ़ता सभी वासुदेव अपने पूर्व भव में निदान किये हुए होते है और वे नियमा नरक में ही जाते है। वासुदेव कृष्ण भी संयम अंगीकार करने लिए तड़प रहे थे। परन्तु सभी जीव विचार करते हैं कि मेरा मरण किस प्रकार होगा। सब जानते है कि मरना तो निश्चित है। भगवान कहते है मरण के पहले अपने साम्थर्य से जन्म-मरण की श्रृंखला को तोड़ सकते हो । चार कषाय से छूटने पर ही जीव संसार मुक्त हो सकते हैं ये चार कषाय ही संसार भ्रमण की जड़ है। जब विनाश का कारण पता चलता है तो उसका निवारण आरम्भ करना चाहिए।
पांच इन्द्रियों के 23 विषयों के साथ राग जुड़ जाता है तो वे विषय दुखदायी बन जाते है। आज व्यसन करने वाली व्यक्ति व्यसन को नहीं छोड़ पाता’ पर माता पिता को आसानी से छोड़ देता है। विवेक नही होने से उपकारी माता, पिता का त्याग कर देते है। तो संतान माता के अथक प्रयासों को जिससे संतान का भविष्य सवारते है, उसे भूल जाते है एक माता-पिता ही है जो निस्वार्थ भाव से अपने संतान की भलाई चाहते है। इसलिए ज्ञानीजन कभी कहते है माता-पिता को हर पर अपनी आंखो के सामने रखो उन्हें खुश रखो यदि संतान का परम कर्तव्य है। भगवान कहते है धर्म सदैव अपने साथ रखने जैसा है जो धर्म की सुरक्षा करता है धर्म भी उस व्यक्ति की रक्षा करता है। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।