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सद्गुरु, शास्त्र, आगम एक मार्गदर्शन: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

सद्गुरु, शास्त्र, आगम एक मार्गदर्शन: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा संसार में भटके हुए लोगों के लिए सदागम यानी सद्गुरु, शास्त्र, आगम एक मार्गदर्शन है। जिन लोगों के जीवन का लक्ष्य नहीं है, संसार, मोक्ष, पाप, पुण्य का ज्ञान नहीं है समागम उनके लिए सही चुनाव है। इस संसार में हम आज तक भटके ही है।

सदागम महावैद्य जैसे हैं। यह सब व्याधि दूर कर सकते हैं। कर्म, राग, द्वेष रूपी व्याधि का इलाज वे कर सकते हैं। सब प्रकार के रोग को मूल से उखाड़ फेंकने की ताकत उनमें है। सदागम को ‘जगत दीपक’ की उपाधि प्राप्त है। सदागम के प्रति यदि आपमें श्रद्धा भाव है तो आपकी आत्मा को नरक में नहीं जाने देंगे।

उन्होंने कहा यह विषम एवं पंचम काल है। ऐसे काल में भी भव्य जीवों को इस संसार सागर से तरने का आधार है जिनबिम्ब और जिनागम। हजारों वर्ष पुराने जिनबिम्ब आज भी मौजूद है। इसी आधार पर आज के काल में जिनशासन गौरव व पद को संभालने में कामयाब है। महावीर भगवान ने वाणी, देशना, उपदेश की जो धारा बहाई, उन वचनों का संग्रह जिनागम, शास्त्र के रूप में आज भी मौजूद है। उनका आज भी श्रवण कर सकते हैं।

उन्होंने कहा सिद्धर्षि गणि कहते हैं अनादि काल के कर्मों से मुक्त होना है तो सदागम की आराधना करो। कर्म राजा की रहस्यमयी बातें सदागम जानते हैं। हमें पुण्य से सदागम मिले हैं। जरूरत है कर्म से ज्यादा सदागम, शास्त्रों, सद्गुरु के प्रति श्रद्धा भाव रखने की, उसी अनुसार जीवन जीने का लक्ष्य रखने की। हमारे जीवन में जो संयोग, परिस्थिति है, वह कर्म के अनुसार है लेकिन कर्म के ऊपर सदागम है।

उन्होंने कहा जीवन में हताश, निराश होने की जरूरत नहीं है। अभी भी पश्चाताप हो रहा है तो सदागम की शरण में चले जाओ। उनके प्रति श्रद्धा व आस्था पैदा करो। आपके पास मौका है, जितने पाप, अपराध, कुकर्म हुए हैं उनका प्रायश्चित कर सदागम की शरण में आ जाओ।

उन्होंने कहा निर्भागी, अधम जीव में सदागम के प्रति आस्था, बहुमान, आदर नहीं है। कितनी भी परमात्मा की महिमा, पाप, पुण्य के बारे में बताओ उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उसकी तुलना में हमें कुछ ज्ञान तो है। सदागम के प्रति आस्था उसी को होगी जिसका भविष्य में कल्याण होने वाला है।

अबूझ लोग यह सोचते हैं एक व्यक्ति के पास इतने सारे गुण कैसे हो सकते हैं। सदागम से ही आत्म कल्याण का मार्ग मिलने वाला है। जिनशासन में नित्य प्रवचन का श्रवण करना मिलता है। ऐसी व्यवस्था जैन धर्म में ही है।

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