किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि हमें नवपद के तीसरे दिन आचार्य पद की आराधना करनी है। उन्होंने कहा दवाई से ज्यादा महत्व वैद्य का होता है, इसी तरह साधना का जितना महत्व है, उससे भी ज्यादा महत्व साधना कराने वाले का है।
नवपद में देव, गुरु, धर्म का समन्वय रहा हुआ है। देवतत्त्व, गुरुतत्त्व, धर्मतत्त्व से मोक्ष जुड़ा हुआ है। साधना मार्ग में गुरु का अत्यंत महत्व बताया गया है। गुरुतत्त्व की यह विशेषता होती है कि वह इस लोक के कई दोषों का निवारण करने वाला समर्थ तत्त्व है, इससे हमारा परलोक भी सुधरता है। गुरु की गाइडलाइन के बिना का कोई मंत्र लाभकारी नहीं होता। सद्गुरु के अलावा परमात्मा की पहचान कोई नहीं दे सकता। कहते हैं सद्गुरु की भक्ति करो तो परमगुरु स्वत: ही मिल जाते हैं। गुरु हमें जैन शासन से मिले और जैन शासन बनाने वाले परमात्मा है। सद्गुरु की सेवा से सद्गति और सुमति मिलती है।
उन्होंने कहा जीवन में बुरा करके कभी हंसना नहीं, अच्छा करके कभी रोना नहीं। कर्मों के द्वारा दिए दुःख में कभी ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना। दुःख को सहन करने की ताकत धर्मदृष्टि से मिलती है। गुरु व्यक्ति के नाम, प्रसिद्धि को देखकर नहीं बल्कि उसकी दशा देखकर गाइडलाइन देता है। सद्गुरु मिलने से पूर्व भवों के पाप कट जाते हैं।
निकट मोक्षगामी आत्मा के लक्षण यह है कि उसे धर्म श्रवण करने की इच्छा होती है और दुःखों के काल में भी वह धर्म का विस्मरण नहीं करता है। गुरुदेव ने कहा जीवन में ज्यादा विघ्न आए, तो काउसग्ग करना। यदि सत्व जबरदस्त है, तो पुण्य तत्काल खिलता है। किया हुआ भावधर्म कभी निष्फल नहीं जाता है। उसका तत्काल फल भले ही मिले या न मिले, यह अलग बात है। सम्यकदृष्टि वाली आत्मा धर्म को नहीं, खुद को रखकर धर्म की रक्षा करती हैं। उन्होंने कहा अपनी प्रशंसा करने वालों को कभी पास में नहीं रखना चाहिए। अपनी निंदा करने वालों को अवश्य पास में रखना चाहिए। प्रसन्नता की अवस्था में कोई बीमारी टिकती नहीं है। प्रवचन के दौरान प्रभवविजयजी एवं मणिप्रभ दादा की पुण्यतिथि के मौके पर उनका गुणानुवाद हुआ।
आचार्यश्री का आगामी चातुर्मास कोयम्बतूर में होगा
गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी का 2024 का चातुर्मास कोयम्बतूर और आचार्यश्री युगोदयप्रभ सूरीश्वरजी का आगामी चातुर्मास चेन्नई के नाॅर्थ टाऊन बिन्नी जैन संघ में होना निश्चित हुआ है। प्रवचन के दौरान आरएसपुरम शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ और बिन्नी जैन संघ के पदाधिकारी एवं ट्रस्टियों ने उपस्थित होकर आचार्यश्री से चातुर्मास हेतु विनंती की। उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने चातुर्मास की अनुमति दे दी।