चेन्नई. साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा कि ज्यादा दान देने से धन कम होता है, शील का पालन करने से भोगों का वियोग होता है, तप करने से शरीर दुर्बल होता है, लेकिन सत्य बोलने से तो कुछ भी नुकसान नहीं होता। सत्य ही शिव है, सत्य ही सुंदर है, आज सत्य तो चला गया, मात्र सुंदर बनने में लगे हैं। सत्यवादी के समक्ष अग्नि शांत हो जाती है, समुद्र क्षुभित नहीं होता है, रोगों का समूह नष्ट हो जाता है। हाथियों की भयंकर श्रेणी निकट नहीं आती, सिंह शिथिल हो जाता है, सर्प भी उसके नजदीक नहीं आता तथा चोर व रणसंग्राम का भय तो तुरंत ही दूर चला जाता है।
कीर्ति को कलंकित करने के लिए काजल के समान, विश्वास रूपी पृथ्वी को उखाडऩे के लिए हल के समान, अनेक प्रकार के अनर्थ रूपी वन को बढ़ाने के लिए मेघ समान, दुष्ट कार्यों की क्रीड़ा करने के लिए घर समान, सन्मान रूपी अंकुर को नष्ट करने के लिए जंगली जानवर के समान आदि ऐसे झूठे वचन बुद्धिमान प्राणी कभी नहीं बोलता है। जिस प्रकार हाथी के मस्तक पर सिंदूर, घर में दीपक, शरीर में जीव, स्त्री में तारुण्यता, आकाश में सूर्य, रात्रि में चंद्र, देवालय में प्रतिमा तथा ललाट पर तिलक शोभायमान होता है, वैसे ही कीर्ति को क्रीड़ा करने के लिए घर के समान ऐसा सत्य वचन प्राणियों के मुख में आभूषण की तरह सुशोभित होते हैं।
हिमालय में से निकलने वाली गंगा की तरह जिसके मुख में से सत्य वाणी निकलती है, उसके वैरी वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे गरुड़ से सर्प की श्रेणी दूर हो जाती है। सूर्य से जैसे अंधकार वैसे ही क्लेश नष्ट हो जाते हैं, बर्फ से जैसे कमलिनी वैसे ही भय उससे दूर हो जाते हैं। प्रवचन के पश्चात दियावट जैन संघ द्वारा सामूहिक क्षमापना महोत्सव रखा गया। मुनि ने कहा चंदनबाला व बाहुबली की तरह सरल होकर क्षमा भाव धारण करने वाले को शीघ्र ही केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। दियावट की परिभाषा समझाते हुए कहा जैसे दिया और वट (बाती) मिलकर प्रकाश फैलाते हंै, वैसे ही हमें भी मिलजुलकर एकता का प्रकाश फैलाना चाहिए।