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ज्ञान वाणी

सत्य की राह परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग: साध्वी कुमुदलता

सत्य की राह परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग: साध्वी कुमुदलता
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने भगवान महावीर के सत्याणुव्रत का उल्लेख करते हुए कहा कि इंन्सान को सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य बोलने वाले की हमेशा जीत होती है। सत्य की राह पर चलकर ही व्यक्ति अपने आप को परमात्मा से जोड़ सकता है।
सत्य ही इन्सान को विश्वास दिलाता है कि धर्म सत्य पर टिका है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा अनुराग, स्नेह आदि संबंधों के अधीन नहीं होना चाहिए।  व्यक्ति को स्नेह, अनुराग और प्रेम भाव रखना चाहिए लेकिन उसके मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए।
यदि व्यक्ति इस मोह जाल में फंस जाता है तो उसे पूरी दुनिया छोटी लगने लगती है जिससे उसे जन्म-जन्मांतर तक दुखों का ही सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो अतीत से चलती आ रही हैं, वर्तमान में सिर्फ उनके स्वरूप में बदलाव हुआ है। उन्होंने बहु-विवाह का प्रसंग सुनाते हुए भगवान ऋषभदेव के जीवन का उल्लेख किया।
साध्वी महाप्रज्ञा ने कहा जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, मौत दबे पांव आती है, इसलिए कोई भी काम कल पर नहीं छोडऩा चाहिए। जीवन का अर्थ समझ कर जीवन के हर क्षण, लम्हों को सार्थक बना दिया तो आपको जीवन में प्रायश्चित करने का मौका नहीं आएगा। आध्यात्मिक सुख को अपनाएं और इसके लिए पर को छोडक़र स्व में जीना पड़ेगा।
उन्होंने सुख-दुख का उल्लेख करते हुए कहा कि परमात्मा आपको वैभव दे सकता है लेकिन समय नहीं। समय अनमोल होता है। व्यक्ति को अगर समय के मोल का बोध हो जाए तो उसका जीवन आनन्दमय बन जाता है। अनादिकाल से मानव सुख की तलाश में भटकता आ रहा है लेकिन उसे सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती।
वह भौतिक सुविधाओं में सुख ढूंढता है लेकिन परमात्मा कहते हैं कि इस संसार में कोई भी अपना नहीं है। सुख के सब साथी.., दुख में न कोय… पंक्तियों का संगान करते हुए उन्होंने कहा कि  संसार में जितने भी संबंधी हैं सब सुखों के साथी हैं। जब तक सुख आपके साथ है सब अपने हैं लेकिन जैसे ही दुख आने लगता है सब साथ छोड़ देते हैं। उन्होंने कहा इन्सान के हृदय, अंतरआत्मा और प्रभु शरण में सच्चा सुख है, इसलिए इन्सान को बाह्य में सुख की खोज छोड़ देनी चाहिए।
व्यक्ति अगर ढोंग छोडक़र ढंग से जीना सीख जाए तो आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। साध्वी पदमकीर्ति ने ३२ आगमों में से एक सुखविपाक सूत्र का वांचन किया। कार्यक्रम के दौरान साधना बोकडिय़ा के १० पच्चखाण हुए व हाय हैलो छोड़ा जय जिनेंद्र बोला के विजेता को जयजिनेंद्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन महामंत्री हस्तीमल खटोड़ ने किया।

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