सत्यामंगलम्, विल्लुपुरम (तमिलनाडु): अपनी अमृतवाणी से जनमानस को अभिसिंचन प्रदान करने वाले, लोगों को सन्मार्ग पर चलने का मंगल संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग सत्यामंगलम् स्थित राजा देसिंह विद्यालय में पधारे। आचार्यश्री ने यहां उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों, ग्रामीणों और अन्य श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी का रसपान भी कराया।
ऐसा लग रहा था मानों आज इस सत्यामंगलम् में सदैव सत्य ही बोलने वाले, सत्यव्रत का पालन करने वाले और लोगों को सत्पथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करने वाले, लोगों का मंगल करने वाले सत्यामंगलम् को और भी ज्यादा सत्य से परिपूर्ण और मंगलमय बनाने के लिए पधारे थे।
आचार्यश्री गिन्गी स्थित चाणक्य हायर सेकेण्ड्री स्कूल से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आज मौसम में हल्की ठंड भी मौजूद थी। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे गिन्गी में पुराने समय के राजाओं के कीले भी मौजूद हैं। आचार्यश्री के विहार मार्ग के दोनों स्थित पहाड़ों पर कीले में भग्नावशेष स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। आज मौसम में हल्की ठंडक के साथ-साथ कुछ कोहरे का भी प्रभाव दिखाई दे रहा था।
वर्तमान में समय में कड़ाके की ठंड से सिकुड़ते भारत के इस दक्षिणी हिस्से में यह हल्का ठंडापन लोगों को आनंद प्रदान करने वाला था। आगे चलने पर दो रिजर्व जंगल भी दिखे। आचार्यश्री के आज के विहार मार्ग में कहीं पहाड़, तो कहीं जंगल, कहीं खाली पड़े खेत तो कहीं फसलों से अटपटे खेत भी क्रम से आते जा रहे थे। आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर सत्यामंगलम् स्थित राजा देसिंह विद्यालय मैट्रिकुलेशन स्कूल के प्रांगण में पधारे।
आचार्यश्री ने विद्यालय में उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों और श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु लाभ-अलाभ में सदा मध्यस्थ भाव में रहने वाला होता है। भोजन की व्यवस्था हो न हो, अनुकूल स्थान मिले अथवा न मिले, वह प्रतिकूल परिस्थितियों में सम भाव से सदा प्रसन्नचित्त और शांत रहने वाला होता है। साधना करते-करते आत्मा इतनी भावित हो जाए कि चित्त में सदैव प्रसन्नता रहे और समभावी बन सकें। कोई भी समस्या साधु की शांति को न भंग कर सके।
संसार में समस्याओं के आने-जाने का क्रम लगा रहता है। उसमें भी साधु को ही नहीं, आदमी को शांत और समता भाव में रहने का प्रयास करना चाहिए और कभी समस्या समाप्त भी हो सकती है। एक चिन्तन से आदमी दुखी और एक चिंतन से सुखी बन सकता है। आदमी को सदैव प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए। सुख-दुःख दोनों परिस्थितियों में समान रहने का प्रयास करना चाहिए। समस्या होने पर भी मानसिक स्तर से दुःखी होना आवश्यक नहीं।
आदमी समस्याओं में बिना मतलब हाथ-पांव क्यों डाले। आदमी को चित्त को शांत रखने और समभाव में जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। आदमी न दूसरों के बारे में बुरा बोले, न सुने और न देखे तो कितना अच्छा हो सकता है। आदमी को समता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त विद्याथियों को सत्य बोलने, जीवन में ईमानदारी रखने और नशा से दूर रहने की पावन प्रेरणा प्रदान की तथा इससे संबंधित संकल्प भी करवाए।
आचार्यश्री के अपने विद्यालय में पदार्पण से हर्षित विद्यालय की चेयरमेन श्रीमती कौशल्यादेवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आज हम सभी की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं है। आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन से हमारा विद्यालय परिसर धन्य हो गया। इसके लिए हम आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञ हैं।