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सत्कर्म का आचरण ही बनाता है व्यक्ति को यशस्वी : कपिल मुनि

सत्कर्म  का आचरण ही बनाता है व्यक्ति को यशस्वी :  कपिल मुनि
चेन्नई: यहाँ विरुगमबाक्कम स्थित एमएपी भवन में चातुर्मासार्थ विराजित क्रांतिकारी सन्त श्री कपिल मुनि जी म.सा. ने  आयोजित 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव में उत्तराध्ययन सूत्र पर आधारित प्रवचन माला के तहत रविवार को  प्रवचन के दौरान कहा कि इंसान को ढोंग और पाखण्ड पूर्ण जीवन से ऊपर उठकर ढंग का जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि इंसान का प्रत्येक विचार और कर्म उसके भविष्य का निर्माण कर रहा है ।
व्यक्ति के द्वारा जीवन में जो कुछ भी अच्छा -बुरा किया जाता है वो कभी व्यर्थ नहीं जाता है । इसलिए जिन्दगी में जो कुछ भी करें बहुत ही सोच समझ कर करना चाहिए अन्यथा हाथ मलते रहने के सिवाय कुछ भी नहीं बचेगा । मुनि श्री ने कहा कि आदमी आज तेज रफ़्तार वाले युग में जी रहा है इसलिए वह सोचता कम है । कुछ लोग तो मानते हैं कि सोचने से भी रफ़्तार पर असर पड़ेगा ।
उन्होंने कहा कि जब तक जीवन है तब तक उसके साथ कर्म लगा रहेगा क्योंकि जीवन एक कृत्य है । कार्य करने वाले की नीयत और प्रकृति उस कार्य को पूजा भी बना सकती है तो अपराध भी । अच्छे कार्य का परिणाम भी सुन्दर होता है । लाख बाधा आने पर भी व्यक्ति को अच्छे कार्यों  को करते रहना चाहिए ।खास कर धर्म के कार्यों को तिलांजलि देने का पाप तो हर्गिज भी नहीं करना चाहिए । अच्छे कर्म ही व्यक्ति को यशस्वी बनाते हैं ।
अच्छे कर्म जीवन यात्रा का फासला कम कर देते हैं । जब हमारा जन्म होता है तभी मृत्यु सुनिश्चित हो जाती है । जन्म और मृत्यु के बीच की दूरी को हरेक इन्सान अपने अपने हिसाब से महसूस करता है  धर्म और परोपकार के कार्य  करने वालो के लिए ये दूरी और यात्रा उत्सव बन जाती है और खुदगर्जी और निजी स्वार्थ के दलदल में जीने वालों के लिए बोझ बन जाती है । 
उन्होंने कहा कि जीवन को गौरवप्रद और सफल बनाने के लिए चेतना के दरवाजे पर विवेक का पहरा होना बेहद जरुरी है । जिंदगी की प्रत्येक प्रवृति और गतिविधि विवेक के साथ की जाए तो कर्म बन्ध से बचना आसान हो जाता है । जीवन से जुडी प्रत्येक प्रवृति चलना,फिरना,उठना,बैठना और भोजन-संभाषण करना आदि विवेक युक्त होने चाहिए ।स्व विवेक ही जीवन का निर्णायक है ।
विवेक ही एक ऐसा तत्व है जो अच्छा-बुरा और करणीय-अकरणीय के बीच भेद-रेखा खींचता है । मुनि श्री ने कहा कि जिस कार्य को उत्साह और उमंग से लबरेज होकर किया जाता है उसका परिणाम भी सकारात्मक और दीर्घजीवी होता है । साधना की प्रत्येक क्रिया व्यक्ति के लिए आनंद की अनुभूति का विषय बनना चाहिए तभी वह लंबे समय तक जीवन का अनिवार्य अंग बन पायेगी ।
उन्होंने कहा कि साधना की सिद्धि के लिए या सार्थक परिणाम पाने के लिए उसका नियमित और निरंतरता के साथ अभ्यास जरुरी है ।जन्मो जन्मो के कर्मों का नाश एक दिन या कुछ पल में ही नहीं हो जाता ।समय रहते ही व्यक्ति को अपनी जीवन शैली को सुधारने की चेष्टा करनी चाहिए अन्यथा बेहद दयनीय हालत में जीने और मरने की मजबूरी का सामना करना पड़ेगा ।
जिंदगी सस्ती और सहज में मिलने वाली चीज नहीं है । इसे पाने के लिये अनंत अनंत जन्मों तक पुण्य के सुमेरु खड़े करने पड़ते है ।ये जीवन संसार की आपाधापी में ही व्यतीत न हो जाये इसलिए प्रत्येक पल को होश पूर्वक जीने में ही इस जीवन की सार्थकता और धन्यता का राज छुपा है ।
धर्म सभा का संचालन संघ मंत्री महावीरचंद पगारिया ने किया ।

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