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सच्चे हृदय से अपने गुरु के प्रति समर्पित शिष्य को इश्वर खुद ढूंढता है: सुयशा श्री जी मसा

सच्चे हृदय से अपने गुरु के प्रति समर्पित शिष्य को इश्वर खुद ढूंढता है: सुयशा श्री जी मसा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज गुरु पूर्णिमा दिवस ता: 13/07/2022 बुधवार को “प्रज्ञा ज्योति संबोधी कुशल प.पू. गुरूवर्या “सुधा कंवर जी” म सा आदि ठाणा 5 के सान्निध्य में चातुर्मास की भव्य शुरुआत हुई। सर्वप्रथम णमोकार मंत्र, गुरुर ब्रह्मा विष्णु, एवं पैंसठिया जाप सम्पन्न हुआ और बाद मे “सुयशा श्री जी मसा” का व्याख्यान हुआ!मसा ने आज के दिन को “चातुर्मास स्थापना दिवस” के नाम से सम्बोधित किया! धर्म की अलग अलग परिभाषा को, धर्म आराधना, अहिंसा का पालन करना, सामायिक करना, साधु सेवा करना, तपस्या करना, धर्म के प्रति जागृत होना, लोगों की सेवा करना, आंतरिक भावों की शुद्धिकरण, आत्मा की शुद्धिकरण इत्यादि को एक प्रक्रिया के रुप में एक परम्परा के रूप में बताया! गुरु के उद्बोधन से मनोवृत्ति, लालसा पर अंकुश लगता है और पत्थर को मूर्ति बनाने में, बीज को वटवृक्ष बनाने में सहयोग मिलता है! सच्चे हृदय से अपने गुरु के प्रति समर्पित शिष्य को इश्वर खुद ढूंढता है! हमारा मन ही गुरु दक्षिणा है!

पानी से बर्फ बनने को और बर्फ से पानी बनाने की प्रक्रिया को भौतिक बदलाव यानि physical change कहते हैं! लेकिन दूध से दही और दही से मक्खन और मक्खन से घी बनाने की प्रक्रिया को रासायनिक बदलाव यानि chemical change कहते हैं! Chemical change में घी वापस मक्खन या दूध नहीं बन सकता! और हमारी जिंदगी में भी हमें ऐसे ही बदलाव चाहिए! हमें गुरु बनाना नहीं है, जो हम बना नही सकते! वे पहले से ही विद्यमान है! हमें तो सिर्फ शिष्य बनना है! श्री सुधाकवरजी मसा ने फ़रमाया कि जैसे किसान जमीन को खेती करने लायक उर्वरा बना देता है वैसे ही चातुर्मास धर्म का बीज बोने का सुअवसर देता है! चातुर्मास नहीं होते तो भव्य आत्माएं मोक्ष की ओर नहीं बढती! जैसे विद्यालय में विद्यार्थी, कोर्ट में वकील और अस्पताल में डॉक्टर यूनिफॉर्म में नजर आते हैं वैसे ही श्रावक श्राविकाओं को चातुर्मास में महावीर पाठशाला में सामायिक वेशभूषा में नजर आना चाहिए! जो “गुप्त शक्तियों” से “रूबरू” कराये उसे “गुरु” कहते हैं!

*इतिश्री….!*

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