चेन्नई. माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के तीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि संहनन के छह प्रकार हैं| हमारे शरीर में संहनन का भी महत्व होता हैं| अस्थीयों (हड्डियों) की संरचना को संहनन कहा जाता हैं|* किसी आदमी की हड्डियाँ मजबूत हो सकती हैं, तो किसी की कमजोर हो सकती हैं|
कई लोग अपनी हड्डियों को मजबूत रखने के लिए केल्शीयम या अन्य पदार्थों का सेवन करते हैं| कई बार आदमी गिरता हैं, हड्डी टुट जाती हैं, फैक्चर हो जाता हैं| फिर ऑपरेशन करता है, विश्राम करना पड़ता हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि संहनन पृथ्वीकाय, वनस्पति आदि स्थावर जीवों में भी होता हैं| प्रश्न हो सकता हैं कि इनमें कौनसी हड्डियाँ होती हैं? इसका संभावित एक समाधान यह हो सकता हैं, कि अस्थि एक प्रतीक है कठोरता की| शरीर में जो कठोरता का भाग हैं, वो संहनन हैं, तो स्थावरकाय के जीवों में भी कुछ तो कठोरता हैं, होगी, वहीं उनका संहनन हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शरीर का वह भाग, वह ढाँचा, जिस पर और शरीर टीका हुआ है, वह संहनन हैं|* जैसे मकान में खंभे-खंभे बनाकर, उसके उपर छत डाली जाती हैं| प्रवचन पंडाल के बीच-बीच में जो खंभे है, फिर उस को पंडाल का रूप दिया गया, तो ये खंभे हैं, वे मकान, पंडाल की हड्डियाँ है|* इसी प्रकार हमारे शरीर में जो हड्डियाँ है, वे खंभे के समान हैं, जिस पर और शरीर टीका हुआ हैं|
जिसकी हड्डियाँ मजबूत वह स्वस्थ*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि वज्रॠषभनाराच संहनन सुदृढतम संघनन होता हैं|* अस्थीयों की अनुकूलता, यह स्वस्थता होती हैं| हम स्वस्थ – स्वस्थ शब्द काम लेते हैं, इसके अनेक अर्थ हो सकते हैं, उसमें एक अर्थ जिसकी हड्डियाँ ठीक है, मजबूत है, एक अपेक्षा से वह आदमी स्वस्थ होता हैं|*हड्डियाँ ठीक है, शरीर के और भी अवयव ठीक है, तो शरीर हमारा सक्षम होगा| सक्षम शरीर का हम अध्यात्म की साधना में उपयोग करे|* जो साधु बनते हैं, साधना करते हैं, वे शरीर का कितना अच्छा उपयोग करते हैं|
एक कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि 80 वर्ष की अवस्था में भी गुरू धर्मोपदेशना के लिए छोटे-छोटे विहार करके, छोटे साधुओं का सहारा लेकर वे ग्रामानुग्राम पधारते हैं| छोटे बाल साधु और सुश्राविका की बात समझ में नहीं आने पर श्राविका के ससुर गुरू के पास पहुंचते हैं| गुरु से निवेदन करते हैं, तो गुरू, बाल साधु और श्राविका की बात का भावार्थ समझाते हुए, उस वृद्ध श्रावक को प्रेरणा देते हुए कहते हैं, कि इस जीवन का कोई भरोसा नहीं, इसलिए यह छोटी उम्र में ही साधु बन गया| गुरु ने कहा कि जो आपकी बहू ने उम्र के बारे में अपने बच्चों को बारह वर्ष का बताया, क्योंकि वह उसे बचपन से ही धार्मिक संस्कार दे रही हैं और बच्चा उसका पालन कर रहा हैं|
अपने पति जो पिछले पांच वर्षों से ही साधु महात्मा की सेवा उपासना कर रहा हैं, कुछ माला, स्वाध्याय भी करता है, उसके आधार पर बहू ने अपने पति की उम्र पांच वर्ष बताई और आपको को छोटा बच्चा, पालने में झुलने वाला, इसलिए बताया कि आपके जीवन में अध्यात्म का पुट ही नहीं हैं, धर्म का पालन नहीं करते हो| गुरू के यथोचित उत्तर पाकर वह वृद्ध गुरु से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरु धारणा) स्वीकार की और श्रावक के व्रतों को जीवन में अंगीकार किया|
आचार्य श्री ने धर्मसभा को विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारा जो यह संहनन वाला शरीर हैं, जितनी हमारे शरीर की सक्षमता है, हम उसका उपयोग धर्म की, अध्यात्म की साधना में करे, तो संहनन का मजबूत होना, हमारी आत्मा के कल्याण के लिए उपयोगी बन सकता हैं|
श्रीमती रंजना संचेती ने आचार्य प्रवर से आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
ज्ञानशाला ज्ञानार्थी रोलिंग शील्ड संगीत प्रतियोगिता का हुआ आयोजन*
परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में, तेरापंथ युवक परिषद् चेन्नई के तत्वावधान में, श्रीमती मोहनबाई सोहनलाल डांगरा ज्ञानशाला ज्ञानार्थी रोलिंग शील्ड संगीत प्रतियोगिता* का आयोजन हुआ|
मंगलाचरण ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने एवं स्वागत भाषण तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा, आभार ज्ञापन मंत्री श्री मुकेश नवलखा एवं संचालन, कार्यक्रम संयोजक श्री हेमंत मालु ने किया। प्रतियोगिता मे 17 ज्ञानशालाओं से 41 ज्ञानार्थीओं ने अपनी प्रस्तुति दी। निर्णायक की भूमिका श्री जसवंत डूंगरवाल, श्री आनंद समदड़िया एवं श्रीमती संगीता गादिया ने निभाई।
रोलिंग शील्ड के विजेता के रूप में तंडियारपेट ज्ञानशाला ज्ञानार्थी मास्टर प्रत्युष श्रीश्रीमाल का चयन हुआ, द्वितीय सुश्री काव्या बाँठिया (साहुकारपेट ज्ञानशाला) एवं तृतीय सुश्री रिद्धि समदड़िया (अंबत्तूर ज्ञानशाला) रही, सभी विजेताओं को पुरस्कृत किया गया,अन्य सभी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार दिए गए।
इस प्रतियोगिता के निर्णायकगणों एवं प्रायोजक श्री विनोदकुमार ललितकुमार डांगरा का सम्मान अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा ने किया। इस प्रतियोगिता के सफल आयोजन मे सहमंत्री द्वितीय श्री कमल सावनसुखा एवं शिक्षा व्यवस्थापक श्री दीपक कातरेला का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति