कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा व्यक्ति को चाहिए कि वह फूलों की तरह सुगंध बांटे एवं सदाचार का पालन करे। जानवर, जानवर की तरह ही पैदा होता है और जानवर की तरह ही मर जाता है लेकिन आदमी, आदमी की तरह ही पैदा होता है और बहक जाए तो पशु की तरह मर सकता है।
यदि संभल जाए तो राम, महावीर की तरह भगवान भी बन कर आदर्श प्रस्तुत कर सकता है। आदमी तो इतना भी गिर सकता है कि जानवर को भी शर्म आ जाए। व्यक्ति भले ही आचरण से ऊपर न उठ पाए लेकिन विचारों में उच्चता रखनी चाहिए। ऊर्जा दो प्रकार की होती है-सकारात्मक एवं नकारात्मक। इसी प्रकार विचार भी दो प्रकार के होते हैं-प्लस और माइनस।
सकारात्मक विचार पशुपति एवं नर से नारायण बना देता है जबकि नकारात्मक विचार व्यक्ति को पशु से भी बदतर बना देता है। इन्सान से हैवान बना देता है। जब व्यक्ति धर्म विरोधी होता है तो निर्दयी हो जाता है और जब धार्मिक होता है तो प्रेम व करुणा से भर जाता है। आदमी का पूरा जीवन उसके अच्छे-बुरे विचारों पर निर्भर करता है।