चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा संसार में भावधारा से मनुष्य का जीवन चलता है। जैसी जिसकी भावना रहती है उसका जीवन वैसा ही बनता है। भावों से ही मनुष्य के भव बनते हैं। भवों के लिए भावों को सुंदर बनाना होगा।
ज्ञानी कहते हैं कि जो शुभ भाव स्वीकार करता है उसके भव सुधर जाते हैं। अशुभ भाव लेकर चलने वाले नरकगामी बनते हैं। जीवन मे आगे जाना है तो अच्छी भावना रखो। साध्वी समिति ने कहा भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान करना बताया गया है। समाज में नारी का सम्मान हमेशा बनाये रखना ही मनुष्य का मूल कर्तव्य है।
भारत देश में नारी जाति का बहुत बड़ा उपकार है उसे कभी भूलना नहीं चाहिए। स्त्री जिस घर में नहीं होती वह घर घर नहीं होता है। घर को स्वर्ग बनाना नारी का काम होता है और घर में खुशिया नारी लाती हैं। पुरुष तो केवल एक जीवन जीता है पर नारी दो जीवन जीती है। अपने पिता और पति के घर की संस्कृति में मेल मिलाप करने में मुख्य भूमिका नारी की होती है।
नारी रीढ़ की हड्डी होती है। जैसे रीढ़ की हड्डी न हो तो चलना संभव नहीं है वैसे ही नारी न हो तो जीवन चलाना संभव नहीं है। अगर नारी बिगड़ी तो समाज बिगड़ सकता है। अगर नारी अच्छी तो घर अच्छा, घर अच्छा तो संसार अच्छा हो जाता है।
संसार को अच्छा बनाने के लिए नारी का अच्छा होना बहुत ही जरूरी है। नारी दान, शील, तप और भव का पालन कर अपने घर की शांति कायम रख सकती हैं। ऐसी नारी का अपमान नहीं बल्कि सम्मान करना चाहिए। जो नारी का सम्मान करना जानते हैं उनको समाज सम्मान देता है।
संसार मे सम्मान चाहिए तो स्त्री का सम्मान करना सीखो। भारतीय संस्कृति में स्त्री को मारना तो दूर हाथ भी लगाना पाप बताया गया है। जिस घर मे नारी को सम्मान दिया जाता है उस घर मे परमात्मा स्वयं विराजमान होते है। जहाँ नारी का सम्मान नहीं होता वहाँ हमेशा दुख और संकट आते हैं।