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संस्कार जीवन की सम्पदा है – मुनि जिनेशकुमार

संस्कार जीवन की सम्पदा है – मुनि जिनेशकुमार

त्रिदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर प्रारंभ

कटक, उड़ीसा ; जीवन को परिमार्जित एवं संस्कारित बनने की प्रक्रिया का नाम संस्कार है। संस्कार जीवन की अमूल्य संपदा है। जीवन की धरोहर है। संस्कार के बिना जीवन शून्य है। संस्कार के बिना व्यक्ति उत्कर्ष को प्राप्त नहीं हो सकता है। संस्कारों के जागरण से व्यक्ति उच्चता, महानता को प्राप्त होता है। संस्कारों के सृजन का समय बचपन है। बचपन को संस्कारित करने के लिए समय-समय पर संस्कार निर्माण शिविर लगाये जाते है, जिससे बच्चों में सर्वागीण संस्कारों का विकास हो सके। नैसर्गिक व अधिगमय – संस्कार के दो प्रकार है। संस्कारों के विकास के लिए व्यक्ति को आत्म साधना करनी चाहिए। उपरोक्त विचार आचार्य महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमार ने श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा, कटक के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर में तेरापंथ भवन में कहे।

मुनिश्री ने आगे कहा कि व्यक्ति अपना हित व कल्याण चाहता है। गम खाना, कम खाना, कम बोलना, नम जाने का विकास करना चाहिए। कम खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, गम खाने से मानसिक संतुलन बना रहता है, कम बोलने से अनावश्यक विवाद से बच जाता है और नम जाने से पराये को भी अपना बना देते है। मुनिश्री ने तत्वज्ञान, इतिहास, जैनधर्म, व्यवहारिक ज्ञान का भी प्रशिक्षण दिया।

मुनि परमानंद ने कहा- जो दूसरों को आदर देता है, वह स्वयं आदर को प्राप्त करता है। व्यक्ति को अपने स्वभाव को बद‌लना चाहिए। मुनि कुणालकुमारजी गीत‌ का संगान किया। प्रशिक्ष‌कों ने शिविरार्थियों को तत्त्वज्ञान के बारे में बताया। शिविर में नाना प्रकार की प्रतियोगीताएं भी हुई। इस शिविर करीबन 55 शिविरार्थी भाग ले रहे हैं।

  समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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