एस एस जैन संघ नार्थ टाउन में पुज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने बताया कि आत्म बन्धुओं, भगवान ने बताया कि जो जीव एक बार मोह निद्रा से जागृत हो जाता है। तो छदमस्थ होते हुए भी बेमान नहीं होता वह अपने संसार को परिमित कर चरम लक्ष्य मोक्ष की अभिलाषा करता है। देव पर्याय व देवलोक का सुख भी शाश्वत नही है।
मनुष्य गति मे मनुष्य की आज्ञा का पालन देव भी करते है। इसका मतलब मनुष्य गति देव गति से उत्तम है। आगम में कई उदाहरण मिलते कि देवता भी मनुष्य का संयम, रद्दी, लावण्य देखने को आते हैं। सुख वास्तव में सुख नहीं है सुख में भी सामायिक प्रतिक्रमण छूट जाता है। मोक्ष की अभिलाषा है तो पुरुषार्थ करना पड़ेगा प्रयत्न करना पड़ेगा।
भगवान के समोवशरण में आते है। देवताओ को देव गति अच्छी नही लगती क्योंकि वे जानते है देव गति के भोग शाश्वत नही है वे भी आतुर रहते कि कब मनुष्य का जन्म लें और मोक्ष की अग्रसर हो जाऊ। जो मनुष्य जानता है कि सांसारिक सुख वास्तव में सुख नहीं है। सुख भी दुख का कारण है । जो मानव सांसारिक सुख को क्षणिक सूख जानकर उसमें आसक्त नहीं होता।
और संसार से छुटकारा पाने का प्रयास करता है। देव गति हो, वासुदेव हो चक्रवर्ती हो ये सुख क्षणिक है। जो भवी जीव होता है वो जिनवाणी पर श्रद्धा रखता है। मोह कर्म है की छुटकारा प्राप्त करने का उपाय खोजता है वे भवी जीव सभी सांसारिक कार्यो को करते हुए भी उनका कर्म बन्ध नहीं होता क्योंकि वे उन सांसारिक सुखो में लिप्त नहीं होते। आमोद प्रमोद के साधन मिलने पर व्यक्ति बेभान हो जाता है। धार्मिक क्रिया को भूल जाते हैं। व्यक्ति आसानी से निकल नहीं पाता ।
भवी जीव धर्म ध्यान नहीं करता तो उसके मन को शान्ति नहीं मिलता और अभवी जीव एक चाय न मिलने पर भी बेचैन हो उठता है, भवी जीव से भौतिक साधन की कोई अभिलाषा नहीं होती वह सब भौतिक साधन को छोड़ सामायिक में लीन रहता है। तप करता है। जो भौतिक साधन उपलब्ध होने पर भी उन्हें छोड़ धर्म ध्यान करता है वह जीव श्रेष्ठ है। भवी जीव देव गति में जन्म लेने पर भी संयम की अभिलाषा को नहीं छोड़ता है व देव गति के भोगों से भी पीठ फेर लेता है।
जो देव गति के भोगो में लिप्त होता है वह काल कर के तिर्यंच गति मे जन्म लेता है। जब और जिसकी पुण्यवानी संचित रहती है वह काल करके मनुष्य जति मे जन्म लेता है। जिसके पास धर्म की डोर है उसे किसी कामना की आवश्यकता नही। जितना ज्यादा त्याग करोगे उतना ही बिना मांगे सब मिला जाता है। मांगने पर तो पानी पिलाने वाला भी नहीं मिलता। पुण्यवानी ही होती है कि बिना माँगे सब साधन उपलब्ध होत है। जीव यदि एक मोह कर्म को जीत ले तो बाकी सारे कर्म अपने आप ही क्षीण हो जाते है।
ज्ञानी जन कहते हैं कि वास्तव में संसार में कोई किसी का नहीं होता है जब कि संसार में पति पत्नी पुत्र पुत्री माता पिता इन सबको अपना मानता है उनके मोह में जकड़ा हुआ संसार बढ़ाता रहता है। टहनी पेड़ से टूटकर यदि कारीगर के हाथ मे चली गई तो उससे फर्नीचर बनाकर उसका मूल्य बढ़ा देते है। उसी प्रकार जो संसार से छूट कर धर्म संयम से जुड़ता है उसके जीवन का मूल्य बढ़ जाता है जीवन सार्थक हो जाता है। संचालन अध्यक्ष अशोक कोठारी ने किया।