वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा संसार सुख-दुख का चक्र है। सुख और दुख दिन-रात के समान आते और जाते रहते हैं। संसार में कोई भी जीव एकांत सुखी नहीं बन सकता है। हर जीव को अपने पूर्व उपार्जित कर्मों के फल अनुसार सुख और दुख भोगने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
एक क्षण का दुख वर्षो के सुख को भुला देता है। सुख में समय जल्दी बीतता है, जबकि दुख में हर क्षण लंबा लगता है। हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना ही सच्ची साधना है ।
लाभ- अलाभ, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु, निंदा-प्रसंसा, मान-अपमान, इन 5 द्वंद में समत्व का गुण होना जरूरी है। जीवन में चाहे कैसे भी उतार-चढ़ाव आए तनाव की स्थिति में ना जाते हुए उसे झेलने की क्षमता होनी चाहिए। विकटग्रस्त अवस्था में तनावग्रस्त होना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
थोड़ी सी हानि होने पर भी व्यक्ति तनावग्रस्त बनकर आत्महत्या तक का भी कदम उठा लेता है जो अनुचित है। हम भाव में रमन करने वाला व्यक्ति समस्त विवादों का हल निकालने में सक्षम हो जाता है। पर स्थिति को बदलना इतना आसान नहीं होता है, परंतु मनुष्य तिथि को बदलना जिनके स्वयं के हाथ में रहता है।
महापुरुष वही कहलाते हैं जो जीवन में आने वाली हर परिस्थिति का डट कर सामना करते हुए प्रगति की ओर बढ़ते हैं। दुख के समय दूसरों को दोष न देते हुए स्वयं के कर्मों को दोष देना चाहिए। इस अवसर पर जयकलश मुनि ने कभी खुशियों का मेला है गीतिका प्रस्तुत की। जयपुरंदर मुनि ने रक्षाबंधन के अवसर पर इतिहास के प्रेरक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कोई भी पर्व मनाने के पीछे कोई ना कोई घटनाक्रम जुड़ा हुआ रहता है।
रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जिसमें हर व्यक्ति को रक्षा के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराया जाता है। सच्ची रक्षा अपनी आत्मा की जानी चाहिए। धर्म से ही आत्मा की रक्षा हो सकते हैं ।जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। अधर्मी व्यक्ति द्वारा धर्म को नाश करने का चाहे कितना ही प्रयास किया जाए लेकिन धर्म का नाश तो हो नहीं सकता, उस व्यक्ति का जरूर नाश हो जाता है ।
भगवान ने सभी जीवो की रक्षा के लिए जिनवाणी की प्ररुपणा की । इस अवसर पर मुनि ने रक्षाबंधन से जुड़े विष्णु कुमार मुनि का प्रसंग प्रारंभ किया। संध्या रुणवाल ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए, जिनका संघ की ओर से सम्मान किया गया। मुनिवृंद के सानिध्य में 15 अगस्त को रक्षाबंधन के अवसर पर विशेष प्रवचन एवं प्रातः 9:00 बजे से रक्षा कवच का अनुष्ठान होगा।