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संसार वह होता है जो क्षण-2 में प्राप्त होता है: जयतिलक मुनिजी

संसार वह होता है जो क्षण-2 में प्राप्त होता है: जयतिलक मुनिजी

नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में कहा कि आत्मबन्धुओं आज पर्युषण पर्व का छठा दिन है। जिनेश्वर भगवान ने फरमाया कि संसार वह होता है जो क्षण-2 में प्राप्त होता है। यहाँ द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव की अपेक्षा से सभी द्रव्यों में परिवर्तन होता है जिन द्रव्यों की आप सुरक्षा, पहरेदारी करते हो सभी का चिन्तन मनन करते हो वे सभी जीव-अजीव एक दिन नष्ट हो जाते है। एक छोटा सा मकान बनाने पर आप इतना खुश होते हो सबको अपनी खुशी बांटने के लिए आमंत्रित करते हो और अपनी तारीफ भी कान लगा कर सुनते हो। यदि तारीफ ना करते

 हो स्वयं पूछते हो कि मकान कैसा लगा। घर की एक एक वस्तु के बारे में बताते हो। घर आवश्यकता पूर्ति के लिए होता है पर इन्टीरियर कराते हो लाखो का। इस प्रकार, घर, गाड़ी इन्हें खरीद कर प्रसन्न होते हो, सार-संभाल करते हो। भगवान कहते है ये सब शाश्वत नहीं है। कवि कहता है कि जो भी इस दुनिया को दिख रहा वह क्षण क्षण विनाश की ओर बढ़ रहा है। जब रावण की सोने की श्रीलंका भी नष्ट हो गयी तो फिर हमारे मकान तो कुछ भी नहीं उस पर गर्व क्यों करें।

पांचवे आरे में पहले से ज्यादा दीक्षा हो रही है पहले के आरो में दीक्षा या तो बाल्यकाल में या प्रौढ़ावस्था में ज्यादा होती थी। अंतगड की 90 भवी आत्माओं ने संसार को खुशी छोड दीक्षा ली थी। जैन परिवार में जन्म लेने वाला मरण से भयभीत नहीं होता क्योंकि जिनेश्वर भगवंत ने जीने की कला के साथ साथ मरण पर विजय प्राप्त करनी भी बताई है। एक आयंबिल तप सभी इन्द्रियों को वश में कराने में सक्षम होता है। इन्द्रिया वंश में तो क्लेश भी नहीं होते।

देवलोक के देवता भी तपस्वी के आगे नतमस्तक हो जाते है। इसलिए ज्ञानी जन कहते है कि संसार में कोई प्रकोप हो तो तप की शरण ले लो। धर्म स्थान में कभी ताला और जाला नही लगना चाहिए। वर्तमान में समझदारी व नासमझी दोनो ही बहुत है। आज कल इतने समझदार है, कि गुरु भगवंतो के पास भी तर्क कुतर्क करने लगते है। मायाचार करके कितनी भी सामायिक कर लो वह आपको फल नहीं देगी। सरलता से की गई सामायिक आपको भव सागर पार करा देगी। हमें सदैव दूसरों को धर्म ध्यान के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए स्वयं भी धर्म साधना में पुरषार्थ करो और दूसरो को भी प्रेरित करो। पुण्यवाणी क्षीण होने पर पापकर्म का उदय होने पर कोई पूछने भी नहीं आता। जो कभी आपके सामने हाथ जोड़े खड़े रहते थे वे भी पाप कर्म का उदय होने पर सामने देखते तक नहीं। इसलिए ज्ञानी जन कहते है कि पुण्यवाणी पर इतराओ मत । जो भोग मिला उसका अभिमान मत करो। समभाव से पुण्यवाणी को भोगों। कर्मो की लीला को समझ कर अपने मन को धर्म से जोड़ने का प्रयास करो धर्म की शरण में जा अपनी आयुष्य को पूर्ण करने वाला सदैव उत्सव मनाता है। ये कथा सुन कर, समझ कर स्वयं को धर्म से जोड़ो। अच्छा मनुष्य वही होता है जो हर स्थान से ज्ञान प्राप्त करता है धर्म स्थान क्लेश का नही ज्ञान प्रप्त करने का धर्म ध्यान करने का स्थान है। अच्छी सलाह शान्ति से स्वीकार करनी चाहिए उस पर तर्क नही करना चाहिए सरल बनने वाले की सदगति होती है दुर्गति नही होती।

आज 5 से 8 साल के बच्चों ने कविता के माध्यम से त्याग का संदेश दिया। रात्रि भोजन त्याग, खाना झूठा मत छोड़ो, घास पर मत चलो आदि के लिए प्रेरित किया। बच्चों व महिला मण्डल द्वारा जैन विधि से जन्मदिन कैसे मनाये इस विषय पर नाटिका प्रस्तुत की गयी ।

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