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ज्ञान वाणी

संसार रूपी अटवी से बाहर निकलने का रास्ता – मनुष्य जन्म :आचार्य श्री महाश्रमण

संसार रूपी अटवी से बाहर निकलने का रास्ता – मनुष्य जन्म :आचार्य श्री महाश्रमण

आरकोणम, वेल्लूर (तमिलनाडु): सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे मंगलकारी संदेशों के साथ मानवता का कल्याण करने निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, तेरापंथ के अधिनायक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ दक्षिण भारत की शेष को अपने ज्योतिचरण से पावन करने के लिए निकल पड़े हैं। आम जनता के हृदयता में मानवता के बीज वपन को आचार्यश्री नियमित मंगल प्रवचन ही नहीं कराते, बल्कि अहिंसा के तीनों उद्देश्यों से संबंधित संकल्पत्रयी भी स्वीकार करवाते हैं। आचार्यश्री के संकल्पों से जुड़कर स्थानीय लोग भी अपने जीवन को बदलने का प्रयास भी कर रहे हैं।

मंगलवार को आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ आरकोणम से मंगल प्रस्थान किया। गत दिनों से तेज धूप और उमस के बाद सोमवार की देर सायं से आसमान में बादल उमड़ने लगे थे। मंगलवार को प्रातः आसमान में छाए बादल आज मानों मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मार्ग सेवा में लगे हुए थे। आज के विहार मार्ग के एक किनारे रेलवे लाइन बिछी हुई थी तो दूसरी ओर खेतों में सब्जियां लगी हुई थीं।

कुछ खेतों में पानी भर तक धान की फसल लगाने की तैयारी भी की जा रही थी। रास्ते में आने वाले ग्रामीणों को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री कुल ग्यारह किलोमीटर का विहार कर सेंथामंगलम् स्थित भारत विद्या मंदिर के प्रांगण में पधारे तो स्थानीय श्रद्धालु अपने भगवान को अपने क्षेत्र और घर के आसपास पाकर निहाल हो उठे। साथ ही अपने विद्यालय में आचार्यश्री के पदार्पण से उल्लसित *विद्यालय के संस्थापक श्री नागराजन अपने विद्यालय के शिक्षकों, प्रबन्धकों और विद्यार्थियों सहित स्वागतार्थ खड़े थे।* अपनी परंपरा के अनुसार हाथ में मंगल कलश, नारियल फूल लेकर खड़ी महिलाओं व विद्यालय के संस्थापक ने आचार्यश्री का अपने विद्यालय प्रांगण में भावभीना स्वागत किया।

विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन को बहुत दुर्लभ बताया गया है। कई जीवों को तो आज तक मानव जीवन नहीं मिल पाया होगा। सौभाग्य से प्राप्त मानव जीवन को ऐसे ही गंवा देना नासमझी वाली हो जाती है। संसार से बाहर निकलने का दरवाजा मनुष्य जीवन से ही प्राप्त हो सकता है। आदमी को मानव जीवन में अहिंसा संयम और तप की साधना-आराधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को यथार्थ के प्रति श्रद्धा हो और अहिंसा, संयम और तप के द्वारा मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन रूपी वृक्ष के छह फल बताए गए हैं।

पहला फल जिनेश्वरों की पूजा। अर्हतों को नमस्कार और उनका ध्यान कर उनकी पूजा मानव जीवन रूपी वृक्ष का पहला फल होता है। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में गुरु ही तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं। गुरु की उपासना में करना दूसरा फल होता है। मानव जीवन रूपी वृक्ष का तीसरा फल सत्वानुकंपा को बताया गया है। सभी जीवों के प्रति दया और अनुकंपा की भावना हो। शुद्ध साधु को शुद्ध पात्र में दान देना चैथा फल बताया गया है। आदमी को गुणों के प्रति अनुराग रखने का प्रयास करना चाहिए। गुण कहीं से भी प्राप्त हो आदमी को गुणों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।

 

आदमी को आगम श्रवण का प्रयास करना चाहिए। साधु के मुख से आगमवाणी का श्रवण मानव जीवन रूपी वृक्ष का छठा है। दुर्लभ मानव जीवन को केवल भौतिक सुखों में बीताने वाला मूर्ख और अभागा होता है। मानव जीवन के द्वारा आदमी को संसार सागर से पार उतरने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् विद्यालय के संस्थापक श्री नागराजन तथा विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती आर. विजयालक्ष्मी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री जयचंद खिंवेसरा, श्री सुशील दुगड़, सुश्री कोमल दुगड़, सुश्री यशा दुगड़ ने अपने आराध्य की अभिवन्दना की तथा अपने आराध्य मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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