चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र ्रसूरीश्वर के सान्निध्य में आचार्य कनक्रसूरीश्वर की 56वी पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा हुई। इस मौके पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्य से 56 दिन के विभिन्न नियम ग्रहण किए।
इस मौके पर आचार्य ने कहा गुरु में भगवान की छवि दिखती है। शिष्यों की चेतना जाग्रत करना ही गुरु का कार्य है। यदि गुरुभक्ति हमारे हृदय में आ जाए तो हम परमात्मा के दर्शन कर सकते हैं। केवल परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही यह मानव भव मिला है।
परमात्मा के स्वरूप का दर्शन करना है तो ढूंढने या कहीं जाने की जरूरत नहीं है, केवल सद्गुरु की जरूरत है। इसके लिए परमात्मा का नहीं, सद्गुरु का शोध करो। केवल सद्गुरुके चरणों में समर्पित हो जाओ, जो चाहोगे वह मिलेगा। माता पिता व बड़ों की सेवा की तो गुरु मिल जाएंगे। यह पूर्वपुण्यों के कारण ही संभव हो पाएगा।
उन्होंने कहा आचार्य कनकसूरीश्वर बहुत तेजस्वी थे। उनका जन्म वि.सं. 1935 में कच्छ में हुआ और उनका जन्म का नाम कांजीभाई था। उन्हें विदेश जाकर अध्ययन करने का अवसर मिला लेकिन उनका मानना था विद्या वह है जो पापों से छुटकारा दिलाए।
उन्होंने कहा इस संसार के भीतर क्या है यह पता होना चाहिये। कांजी भाई ने संयम पथ पर जाने का निश्चय करके 1962 में दीक्षा लेकर मुनि कनकसूरीश्वर बन गए। विसं. 1975 में उन्हें पंन्यास, 1985 में उपाध्याय और 1989 में आचार्य की पदवी मिली।
उन्होंने कहा गुरु का प्रेम जीतने वाला ही सुशिष्य है। गुरु के हृदय की इच्छा को समझकर कार्य करना ही गुरु के प्रेम को जीतने की कला है।