चेन्नई. विरुगम्बाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित कपिल मुनि ने कहा कि जीवन तो एक समझौते का नाम है इसलिए सामंजस्य स्थापित करके ही जीवन यात्रा को तय करने में ही भलाई है। सबके प्रति प्रेम और मैत्री का व्यवहार और परस्पर उपकार करते हुए सबके प्रति सहयोग की भावना रखकर जीना ही सफल और सार्थक जीवन की निशानी है।
सजगता और सेवा भावना से ओतप्रोत जीवन ही सही मायने में जीवन है। एक ऐसा जीवन जिसके चारों और शांति और समता का निवास होता है। इस संसार में प्रत्येक आदमी के साथ समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है। व्यक्ति का पुण्य कमजोर है और कर्म भारी है । उग्र पुरुषार्थ और व्यवस्थित आयोजन करने के बावजूद भी जीवन प्रतिकूलताओं से घिरा रहने वाला है ।
उन्होंने कहा कि जीवन के बेशकीमती पलों को यदि प्रतिकूलताओं से मुक्तहोने में ही लगाते रहोगे तो धर्म आराधना के लिए नया समय कहां से लाएंगे ये चिंतनीय सवाल है। यदि कोई समय के अभाव को बहाना बनाकर जीवन में धर्म और संत समागम की उपेक्षा करता है तो वह इंसान जीवन का घोर अपमान करता है। आदमी दुखी इसलिए है कि ये संसार उसके लिए अनुकूल नहीं है ।
हम लोग सब कुछ अपने अनुकूल चाहते हैं और वैसा नहीं होने पर दुखी हो जाते हैं। हमें यह याद रहना चाहिए कि हम इस संसार के मालिक नहीं है बल्कि कुछ दिनों के लिए इस धरती पर मेहमान बनकर आये हैं। मेहमान की बात घर में नहीं चलती। उन्होंने कहा कि वृत्ति का परिष्कार ही धर्म साधना का मुख्य उद्देश्य है। वृत्ति और भावना की निर्मलता ही साधना का आधार है ।
इंसान की भावना ही भव का निर्माण करती है। इसलिए भावना को कलुषित और दूषित बनाने वाले निमित्त, व्यक्तिओं और वातावरण से परहेज करना ही समझदारी की निशानी है। कर्म बंधन भी व्यक्ति की वृत्ति पर निर्भर करता है । जब व्यक्ति का पुण्य क्षीण हो जाता है और पापों का अनुभाग बढ़ जाता है तब जीव की दशा बेहद खतरनाक हो जाती है।
संघमंत्री महावीरचंद पगारिया ने बताया कि सर्व सिद्धि प्रदायक भक्तामर स्तोत्र जप अनुष्ठान का चतुर्थ चरण रविवार को सवेरे 7.30 बजे से 9.00 बजे तक आयोजित किया जाएगा। रविवारीय विशेष प्रवचन दोपहर 2.30 बजे से होगा।