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संसार में दो ही तत्व है जीव और अजीव: जयतिलक मुनि जी म सा

संसार में दो ही तत्व है जीव और अजीव: जयतिलक मुनि जी म सा

रायपुरम जैन भवन में पुज्य जयतिलक मुनि जी म सा ने प्रवचन में बताया कि अनंत अनंत उपकारी भगवान महावीर ने भव्य जीवों पर  करुणा कर जिनवाणी प्ररुपित की। जीव जब धर्म को आत्मसात कर लेता तो है तो आत्मतत्व का चिंतन करते हुए संसार से निव्रत होने का लक्ष्य रखता है। संसार में दो ही तत्व है जीव और अजीव जब तक जीव को स्व का मान नहीं रहता तब तक वह अजीव (पुदगल) के पीछे भागता है! बेभान रहता है तब तक आत्म को नहीं पहचान सकता है। तो संसार में भटकता रहता है। अर्थात शरीर के पीछे पड़ा रहता है किंतु शरीर कभी साथ देने वाला नहीं है। आज तक कई शरीर धारण किये और छोड दिये।

जब तक कर्म रहते है तब तक यह आत्मा शरीर को धारण करती रहती हूँ ऊपर नीचे गमन करती है जब कर्म से निव्रत हो जाती है तो सिद्ध, बुद्ध मुक्त हो जाती है। जब आत्म तत्वचिंतन करती है धर्म से जुड़ती है तो स्व का कल्याण करती है इसके लिए श्रावक के 12 व्रत का निरूपण किया गया है! जब आत्मा मुर्छीत अवस्था अर्थात आसक्ति, परिग्रह रहता है तब तक उस परिग्रह का ही चिंतन चलता रहता है! जितनी आसक्ति उनका परिग्रह जितना परिग्रह उतना ही कर्म बंध होता हैं संसारी जीव को परिग्रह आवश्यक है तो उसकी मर्यादा कर लो, आस्कति से तटस्थ भाव से रहो।

भगवान कहते है मर्यादा कर लोगे तो आपका संग्रह टीकेगा। परिग्रह की मर्यादा कर लो तो अपना धन टिका रहेगा। जितना धर्म है उतनी ही इच्छा भी है। असीमित इच्छा पूर्ण नही होती है। इच्छा आकाश के समान अनंत है अत: उसकी मर्यादा करो! यथार्थ रूप से जीवन निर्वाह करने, धर्म ध्यान पूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए परिग्रह की मर्यादा करो। जितना जीवन उच्च कोटि का होगा उतना ही परिग्रह मुक्त होते जाओगे। धनार्जन करना बहुत कठिन है। जैसे जैसे धन आता है वैसे वैसे खर्च बढ़ता जाता है! और खर्च न हुआ तो उसकी सुरक्षा की चिन्ता रहती है।

अनंत इच्छा पूरी होना संभव नहीं है। धन की सुरक्षा चाहते है तो उसकी मर्यादा कर लो ! आपको जितने धन की चाह है उतने की मर्यादा कर लो। व्रत प्रत्यारखान लेने के बाद भंग नहीं करना ! अत: पहले ही अपना दायरा बढ़ा करके रख लो यदि पुण्यवायी को धन आ गया तो व्रत तोडने की जरूरत नहीं पड़ेगी! धन के प्रति आसक्ति रहती है। इसलिए पहले ही दायरा बडा रख लो ! जितना ज्यादा धन उतनी ही ज्यादा परेशानी, लड़ाई झगडा होते है अतःभगवान कहते है परिग्रह सीमित रखो। द्रव्य से पहला परिग्रह है खेत” अर्थात खुली जमीन, क्षेत्र आपको जितनी भूमि चाहिए उतनी की मर्यादा कर लो। ब्राह्मी महिला मण्डल, तंडियारपेट द्वारा रक्षा बंधन पर नाटक प्रस्तुत किया गया। धर्म सभा का संचालन ज्ञानचंद कोठारी ने किया।

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