जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने संसार के समस्त अनित्य पदार्थों का वर्णन करते हुए कहा कि मानव भ्रान्तिवश कई बार अनित्य पदार्थों को भी नित्य मान लेता है! उसके पीछे रात दिन एक कर देता है! मन की चाह अनन्त है इसका कभी अन्त नहीं होता अपितु चाह रखने वाले का ही अन्त हो जाता है! शरीर के साथ समस्त पदार्थ अनित्य होते हुए भी मोहवश उसी के पीछे जीवन यात्रा का प्रारम्भ व अन्त हो जाता है!
मुनि जी ने उदाहरण देते हुए महात्मा बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग सुनाया कि जब वह राजकुमार पद पर आसीन थे पिता की ओर से सख्त हिदायत दी गई की ऐसी कोई वस्तु या घटना बुद्ध के सामने न हो जिसे देखकर वराग्य भाव उत्पन्न हो जाये! लाख सचेत रहने के बाद भी एक दिन रथ पर आरुढ होकर निकले तो सामने से उन्हें मरा हुआ आदमी का कलेवर नजर आया, पूछने पर सारथी ने कहा जो मरण इसके साथ घटा है वह सभी के साथ घटने वाला है!
इस छोटी सी घटना से बुद्ध का सोया हुआ वैराग्य जाग गया और उन्होंने उसी समय संकल्प लें लिया कि मैंने जीवन के इस जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पानी है मुझे ये राग रंग बढ़ाने वाली वस्तुओं का त्याग कर सन्यास लेना है एवं स्व पर का कल्याण करना है!
अनित्य भावना वाले अनेक प्रसंग हमारे आपके जीवन में आते ही रहते है फिर भी हम मोह ममत्व के चलते अपने को जागृत नहीं कर पाते है नितिकारों ने लिखा है, यह धन वैभव इस धरती से निकला व इसी धरती पर रह जाता है इसके साथ तमाम पशु आदि पदार्थ भी यही रहने है परिजन श्मशान के आगे नहीं साथ निभा पाते! सुन्दर काया चिता पर आग के हवाले कर दी जाती है!
अपने किए कर्म ही साथ चलते है! सभा में साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा काल चक्र का वर्णन करते हुए चतुर्थ आरा काल का विवेचन प्रस्तुत कर बतलाया गया वह सुखमय शान्तिमय समय कहलाता है! सभा में महामंत्री उमेश जैन द्वारा 4 सितम्बर से प्रयुषण पर्व के लिए सभी को आमंत्रण निमंत्रण दिया गया!