चेन्नई. आज का इंसान दिन-रात पैसे की दौड़ में दौड़ रहा है। जहां उसे धन का लाभ दिखाई देता है, वहां फिर न दिन देखता है, न रात, न धूप देखे, न बरसात। बस लगा हुआ है येन-केन प्रकारेण धन कमाने में। धन कमाना कोई बुरी बात नहीं है, पर उसके साथ-साथ व्यक्ति को अपने शरीर का (स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में चल रही चातुर्मासिक प्रवचनमाला को आगे बढ़ाते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कई बार हम देखते हैं कि आदमी अपनी उम्र के 30-40 वर्ष शुरू में धन कमाने में लगा देता है और फिर 50 वर्ष के बाद जब तन को रोग घेर लेते हैं तब वो पैसा डॉक्टरों और दवाईयों में खर्च करना पड़ता है। गुरुदेव ने कहा ये धन का इतना लोभ किस कारण? शास्त्र कार बताते हैं-मोह के कारण। व्यक्ति सोचता है- परिवार के लिए ये जोड़ जाऊ ये कर जाऊं पर बच्चे एक मिनट में बोल देते हैं आपने हमारे लिए किया ही क्या है? महापुरुषों ने बताया है कि एक ज्ञानी और आज्ञानी में अन्तर क्या है?
ज्ञानी भी संसार में रहता भी और अज्ञानी भी परंतु दोनों के आईक्यू (दृष्टिकोण) में काफी अंतर होता है। अज्ञानी की परिवार को लेकर विचारधारा होती है ये मेरे हैं, मैं इनका हूं। जबकि ज्ञानी सोचता है- ये मेरे नहीं, मैं इनका नहीं। ज्ञानी व्यक्ति भी कमाता है, खाता है, परिवार और व्यापार चलाता है परंतु उसके अंतर में कर्तव्य बुद्धि की भावना होती है जबकि अज्ञानी में मोह बुद्धि होती है।
हमारे यहां एक बड़ी प्रसिद्ध उपमा दी जाती है- जैसे धाय माता (मेड), वह बच्चे को नहलाती है, सजाती है खिलाती है और सुलाती भी है-लोरियां गा- गा कर। बच्चा भी उसे मां की तरह समझता है परंतु उस धाय माता के मन में इस बात का बराबर ध्यान बना रहता है कि ये मेरा नहीं, मैं इसकी नहीं। महापुरुष कहते हैं-ऐसे ही तुम भी संसार का हर कार्य करो बस कहीं पर अटैच मत होवो क्योंकि जब एक दिन वह सब छूटेगा तो तुम्हें फिर दुखी नहीं होना पड़ेगा। दु:ख वहीं से मिलता है, जहां-जहां जिस-जिससे अपनी अटैचमेंट जुड़ी होती है। प्रवचन सभा में अन्नानगर का महिला – मण्डल भी गुरु दर्शन- प्रवचन श्रवण के लिए पहुंचा। उप प्रवर्तक पंकज मुनि ने आशीर्वाद स्वरूप सभी को मंगलपाठ प्रदान किया। संघ के महामंत्री शांति लालजी ने बताया कि घर में नवकार महामंत्र का जाप प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक गतिमान है।