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संसार के विषय भोग कटु फल देने वाले हैं – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

संसार के विषय भोग कटु फल देने वाले हैं – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

मुनि हितेंद्र ऋषि को जन्मदिन की बधाई संदेश का लगा तांता

एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने शुक्रवार को उत्तराध्ययन सूत्र के 19वें अध्याय मृगपुत्रीय की विवेचना करते हुए कहा कि यह अध्याय में सुग्रीव नगर के युवराज मृगपुत्र पर आधारित है। पिछले अध्यायों से इस अध्याय की विशेषता यह है कि इसमें नरक और नरक की वेदना का वर्णन हुआ है।

एक बार युवराज मृगपुत्र अपने महल में गवाक्ष में बैठा नगर की चहल-पहल देख रहा था। उसकी दृष्टि एक मुनि पर पड़ी। उस मुनि को देखकर उसे जाति स्मरण ज्ञान हो जाता है कि वह भी उसी प्रकार एक श्रमण था। पूर्व जन्म की स्मृति के कारण वह संसार से विरक्त हो जाता है। माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगता है। माता-पिता के यह कहने पर कि श्रमणाचार का पालन करना तलवार की धार पर चलना है, मृगपुत्र कहता है मेरी आत्मा ने नरकों में ऐसे कष्ट भोगे है जिनका शतांश भी मानव लोक में नहीं है। पुत्र के दृढ़ संकल्प और तीव्र वैराग्य को जानकर माता-पिता ने दीक्षा की अनुमति दे दी। दीक्षित होकर मृगपुत्र ने उत्कृष्ट तप-साधना करके संसार से मुक्ति प्राप्त की।

उन्होंने कहा हमारे आगमों में चार अनुयोग बताए गए हैं द्रव्यानुयोग यानी तत्व की चर्चा, गणितानुयोग यानी संख्याएं, चरणकरणानुयोग यानी साधक को दिनचर्या, संयम चर्या को क्रमशः निभाना चाहिए, उसकी चर्चा और धर्मकथानुयोग यानी जिन्होंने जीवन में धर्म को अपनाकर जीवन में लक्ष्य की तरफ बढ़ गए, उसका संदर्भ। ये चारों योग आगमों में अलग-अलग रूप से उपलब्ध है। लेकिन इन चारों के विषय का सुंदर रूप से प्रतिपादन उत्तराध्ययन सूत्र में हुआ है।

उन्होंने कहा जब संतों को देखना है तो उनके चरणों की ओर, पात्रों की ओर देखना, उनके चेहरे की ओर नहीं देखना। उन्होंने कहा आज स्थिति यह है कि हम जीवन में सिकुड़ते जा रहे हैं। हम नाम को भी छोटा कर व्यक्तित्व की पहचान को कम कर रहे हैं। आज नाम में ही नहीं, स्वभाव में भी फरक आ गया है। हम प्राचीन संबोधन करके तो देखें, यह मात्र औपचारिकता नहीं है। यह एक दूसरे के प्रति सम्मान का विषय है। हमारे घर के वातावरण के कारण लघुकर्मी भी भारीकर्मी बन जाता है।

उन्होंने कहा जो विषय भोग है, वे कटु फल देने वाले हैं और अनुबंध परम्परा में विषफल के समान दुःख देने वाले हैं। इसीलिए यह शरीर अनित्य है। जिस प्रकार हमें सफर में साथ में भाता लेकर चलना चाहिए, वैसे ही जीवन यात्रा में धर्म का भाता साथ में लेकर चलना चाहिए। जो कमजोर, कायर है, उनके लिए यह संयम यात्रा कठिन है। मजबूत व्यक्ति के लिए यह कठिन नहीं है।

संसार में जितने भी भ्रमणशील प्राणी है, वे कष्ट प्राप्त करते ही हैं। हम इस सूत्र का अनुसरण कर जीवन में आगे बढ़ें। इस दौरान युवाचार्यश्री ने अपने शिष्य हितमित भाषी मुनि हितेंद्र ऋषिजी के जन्मदिवस पर मंगल कामना एवं आशीर्वाद दिया। वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ तमिलनाडु के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने हितेंद्र ऋषिजी महाराज के जन्मदिवस पर शुभकामना देते हुए कहा कि वे श्रमण संघ की उन्नति में अग्रणी बने रहें। महासती उपप्रवर्तिनी कंचनकंवरजी आदि ने भी मंगल कामना की। महासती अणिमाश्री जी ने बधाई गीत के माध्यम से शुभकामनाएं प्रेषित की। शुक्रवार को उत्तराध्ययन सूत्र के लाभार्थी सुरेश लुनावत एवं दिलीप मरलेचा परिवार थे। राकेश विनायकिया ने सभा का संचालन करते हुए बधाई गीत प्रस्तुत किया।

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