चेन्नई. टी नगर में बर्किट रोड स्थित माम्बलम जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि ने गुरुवार को कहा कि जिस संसार में प्राणी जीवन का ताना बाना बुन रहे हैं वह अध्रुव, अशाश्वत और दु:खरूप है।
ऐसा कुछ भी नहीं है जो सदा के लिए बना रहे। जो कुछ भी यहां उपलब्ध हुआ है वह महज एक अनुकूल कर्म के उदय से संयोग मात्र है। जब तक कर्म की अनुकूलता है तब तक ही रहेंगे। प्रत्येक संयोग का वियोग निश्चित है।
ऐसे संयोगों को पाकर अभिमान में फूलना अज्ञानता के सिवाय कुछ भी नहीं है। व्यक्ति के जीवन में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
संसार में जीवन यात्रा को तय करते हुए ऐसे कर्म और आचरण से परहेज करना चाहिए, जिनके कारण जीव की दुर्गति और दुर्दशा होती है। इस अल्पकालीन जीवन को सुखी बनाने के लिए लोग जितना पुरुषार्थ करते हैं उतना अनंत जीवन को सुखी बनाने की दिशा में उदासीन नजर आते हैं। संसार की प्रत्येक चीज अल्पकालीन और क्षणभंगुर है।
उनके प्रति आसक्ति रखना और उनके लिए जीवों से द्वेष वैमनस्य की गांठ बांध कर जीना सबसे बड़ी मूर्खता और अज्ञानता की निशानी है। व्यक्ति के मन का यह भ्रम है कि उसके पास जितना वस्तुओं का संग्रह या धन का अंबार लगा होगा वह उतना ही सुखी होगा। बिना देरी किए इस भ्रम को तोडऩे की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो परमार्थ को बिगड़ते देर नहीं लगेगी।
सुख और शांति का संबंध धन से नहीं बल्कि मन से है। जब मन में न्याय नीति और समता का निवास होगा तभी मन निर्भय होगा। समता और निर्भयता का अनुभव करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन सामायिक साधना करना बेहद जरूरी है। सामायिक आचार शुद्धि का सशक्त आधार है। आत्म गुणों का संपोषण और तन मन में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचरण करने का रामबाण उपाय है।