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संसार एक बंधन है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

संसार एक बंधन है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर
किलपाॅक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा संसार एक बंधन है । आज बंधन किसी को भी नहीं चाहिए, सब स्वतंत्र रहना चाहते है । बंधन में रहने को कोई तैयार नहीं । आजकल तो बच्चे मां बाप के बंधन में रहने को तैयार नहीं । बंधन कितना भी अच्छा हो लेकिन किसी को यह अच्छा नहीं लगता ।
शिष्य को गुरु का बंधन भी अच्छा नहीं लगता । जन्म मरण भी उन्हें बंधन लगता है । लेकिन बंधन के बिना संसार से मुक्ति नहीं मिलने वाली । जब तक आप संसार में है आप बंधन में रहोगे, छुट्टी नहीं सकते । जिसको मुक्त होने की इच्छा है वह मुमुक्ष कहलाता है । यह शरीर भी बंधन है, क्योंकि आत्मा संसार में भटकने वाली है ।
आत्मा व चेतना जागृत होगी तब ही बंधन को तोड़ सकते हो । पत्नी, परिवार, परिग्रह भी बंधन है । लेकिन हम इसे मानने को तैयार नहीं हैं । बंधन से मुक्ति ही हमारा मूल विषय है । बंधन से  मुक्ति होने पर ही सम्यक ज्ञान की प्राप्ति सम्भव है । यही सही उपाय है । आर्य संस्कृति कहती है विद्या वही है जो पाप से मुक्ति की ओर ले जाए ।
जीवन में सबसे बड़ा बंधन है खुद के विचारों का । स्वयं के विचार और मान्यता का त्याग करना चाहिए । काम राग, स्नेह राग व दृष्टि राग बहुत कठिन है । इनके त्याग करने से ही सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है । हमें जीवन में मुमुक्षता पैदा करनी चाहिए ।
उन्होंने कहा संसार में रहे अभाव का दुख, वियोग का दुख व विकृति का दुख का त्याग करना चाहिए । अभाव का दुख दूर करने के लिए संतोष का धन होना चाहिए । जहां संयोग है,  वहां वियोग भी होता है । संसार में पुण्य द्वारा संयोग मिलता है, वहीं वियोग का दुख भी रहता है । शरीर में रोग का आना संभव है । जो चीज बनती है, वह बिगड़ती भी हैं । रोग शरीर में कभी भी उभर सकता है, इसलिए विकृति का दुख भी विद्यमान है ।
किलपाॅक संस्कार वाटिका का शुभारंभ- 
किलपाॅक जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में रविवार को आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर की निश्रा में किलपाॅक संस्कार वाटिका की शुरुआत हुई । इसमें 200 बच्चों का पंजीकरण हो चुका है । बच्चों के जीवन में संस्कारों का बीजारोपण करने के उद्देश्य से इसकी शुरूआत हुई है । इसमें 5 से 15 वर्ष के बच्चे शामिल हुए ।

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