चेन्नई. प्रत्येक राष्ट्र व संस्था का अपना-अपना संविधान होता है। संविधान का सम्मान भी आवश्यक होता है। जहां संविधान के अपमान की स्थिति आ जाती है, वह संगठन खतरे में भी पड़ सकता है। साधु संस्था के मुखिया बनने वाले को यथार्थवादी होना चाहिए। यदि सत्य का पालन करे और सत्य संभाषण करे तो वह मुखिया अच्छा हो सकता है।
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा जहां संगठन या संस्था होती है, वहां संचालन व व्यवस्था की दृष्टि से मुखिया की नियुक्ति करनी होती है। नेतृत्व के बिना तो किसी संगठन या संस्था में कार्य भी कैसे हो सकता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था हो अथवा लोकतांत्रिक किसी को मुखिया बनाया जाता है।
इसी प्रकार धार्मिक संगठनों व धर्मसंघ में नेतृत्व करने वाले आचार्य होते हैं। आचार्य के लिए कुछ आवश्यक कसौटियां बताई गई हैं। जिस साधु को मुखिया बनाया जाए, वह श्रद्धाशील हो। उसमें आगमों और शास्त्रों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव हो।
आचार्य ने कहा नेतृत्व करने वाले साधु मेधावी भी होने चाहिए। किसी कार्य का निर्णय लेने, व्यवस्था के संचालन के लिए स्वविवेक का प्रयोग करने और समुचित निर्णय लेने की क्षमता भी होनी चाहिए। मेधावी हो तो ज्ञानार्जन का विकास और संस्था में ज्ञान का अच्छा विकास भी होना चाहिए।
ये वे कसौटियां हैं, जो नेतृत्वकर्ता के लिए आवश्यक होती हैं। उन्होंने कहा कि आदमी पहले स्वयं पर अनुशासन करे, उसके उपरान्त किसी अन्य पर शासन करने का प्रयास करे। समाज में भी अनुशासन की अपेक्षा होती है इसलिए आदमी को अपने जीवन में अनुशासित बनने का प्रयास करना चाहिए।
इस दौरान अखिल भारतीय महिला मंडल द्वारा जैन स्कॉलर दीक्षांत समारोह भी हुआ जिसमें अखिल भारतीय महिला मंडल की अध्यक्ष कुमुद कच्छारा तथा जैन स्कॉलर कार्यक्रम से जुड़ी हुई डॉ. मंजू नाहटा ने विचार व्यक्त किए।
इस दौरान परीक्षा में उत्तीर्ण लोगों को सम्मानित किया गया। आचार्य के सान्निध्य में अखिल भारतीय महिला मंडल का अधिवेशन भी सोमवार को ही शुरू हुआ जो तीन दिन चलेगा।