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संवत्सरी आत्मज्ञान की ज्योति जलाने वाला पर्व : जयधुरंधर मुनि

संवत्सरी आत्मज्ञान की ज्योति जलाने वाला पर्व :  जयधुरंधर मुनि
वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा संवत्सरी महापर्व क्षमा की अमृतधारा से ह्रदय की कलुषता धोने वाला एवं आत्म ज्ञान की ज्योति प्रकट करने वाला पावन पर्व है । इस पर्व की उपासना एवं आराधना का मूल उद्देश्य राग – द्वेष की शांति करते हुए जनमानस में सरलता, विनय  मैत्री भाव आदि मानवीय गुणों को प्रकट करना है।
इस दिन प्रत्येक आत्म साधक अपने वर्ष भर के जीवन व्यवहार का मूल्यांकन करता है।
अपने द्वारा जाने – अनजाने में हुए दुष्कृत एवं पापों की शुद्ध मन से आलोचना करता है तथा भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति ना हो उसके लिए संकल्पित होता है । यह पर्व प्राणी मात्र के प्रति आत्म तुल्य भाव जागृत करता है।
इसी अहिंसा पर्व के दिन हिंसा को त्याग कर अहिंसा को अपनाने का एक पुनीत पावन संकल्प लिया गया था।
संकल्प शक्ति जागृत होने पर ही लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। इस पर्व में खाने-पीने के बजाय भूखे रहने की होड लगती है। तपस्या आत्म शुद्धि और संकल्प शक्ति के विकास का एक सहज माध्यम होता है। करोड़ों के संचित कर्म तपस्या के माध्यम से निर्धारित हो जाते हैं।
मुनि ने संवत्सरी पर करणीय पांच कर्तव्यों का वर्णन करते हुए कहा संवतसरी प्रतिक्रमण के द्वारा विपरीत दिशा में भटकते जीवन को सही दिशा में लाने का ध्यान होना चाहिए।
प्रतिक्रमण साधन है जिसके द्वारा पापों का शुद्धिकरण किया जा सकता है। प्रतिक्रमण केवल वाचिक ना होते हुए मन की भावना के साथ किया जाना चाहिए।
साथ ही  पश्चाताप के साथ दोषों का पुनः सेवन न करने का संकल्प होने पर ही  प्रतिक्रमण की यथार्थता है।
साधक को शरीर के साथ – साथ आत्म जागृति पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए । उपवास आत्म बल बढ़ाते हुए आत्म जागृति लाता है। उपवास का वास्तविक उद्देश्य आत्मा के निकट पहुंचना एवं बाह्य पदार्थों से दूर होना है। उपवास आत्म – हितकारी होने के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है।
जब मनोविकारों में प्रबलता हो अशांति बड़े विषमताएं उद्विग्न करें तब साधक को समता में रमन करने के लिए उपवास करना चाहिए।
उपवास इंद्रिय निग्रह, मन की एकाग्रता, आत्म संयम और आत्म समता का माध्यम है।
मुनि ने कहा आज युवा पीढ़ी धर्म के मर्म को समझ कर धर्म के समुख हो रही है जो समाज के लिए शुभ संकेत है।
जयपुरंदर मुनि ने कहा संवत्सरी के दिन वैल की गांठ को दूर कर क्षमा का गुण प्रकट करना चाहिए। हर जीव को आत्म अवलोकन करना चाहिए कि कहीं किसी के साथ मनमुटाव या वैर तो नहीं है  वैर की गांठ खुलने पर ही अमित शांति की प्राप्ति हो सकती है । क्षमा मांगने से व्यक्ति छोटा नहीं अपितु महान बनता है।
मान का सही होने पर ही क्षमा का गुण प्रकट हो सकता है । क्षमा के द्वारा शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है । क्रोध प्रीति का नाश करने वाला होता है , जबकि  क्षमा से मैत्री का संचार होता है।
अपनी भूल को स्वीकार करना सबसे कठिन काम होता है
संवत्सरी महापर्व पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा बाल, युवा , वृद्ध सभी ने उत्साह एवं तप – त्याग के साथ इस पर्व की आराधना की। लगभग 50 तपस्वीयों ने अट्ठाई, 9 उपवास एवं अनेक दीर्घ तपस्या के  प्रत्याख्यान ग्रहण किए ।
सभी तपस्यार्थी का संघ की ओर से सम्मान किया गया। दोपहर में भाव आलोचना के अंतर्गत श्रावक – श्राविकाओं को ध्यान के द्वारा अट्ठारह पापों की आलोचना करवाई गई । सायंकालीन प्रतिक्रमण में भी बड़ी संख्या में श्रावकों ने भाग लेकर वर्ष भर में हुए पापों का शुद्धिकरण किया।

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