चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा बंधन दो प्रकार का होता है-द्रव्य और भाव। दोनों से मुक्त हुए बिना मोक्ष नहीं मिल सकता। भक्त भगवान को, आत्मा परमात्मा को अपनी भक्ति के माध्यम से बंधन में बांधने का प्रयास करता है। जीव जब तक अहंकार के अंधकार में रहेगा मुक्त नहीं हो सकता।
चाहे लाभ हो या हानि, सुख हो या दुख, जीवन हो या मरण, निंदा हो या प्रशंसा, सम्मान हो या तिरस्कार ये पांचों अनुकूल हंै तो पांच प्रतिकूल हैं। जीवन में प्रतिकूल समय को अनुकूल बनाना ही समत्व की साधना है। जीव को संयोग में ही वियोग की कल्पना कर लेनी चाहिए क्योंकि मेरा है सो जावे नहीं, जावे सो मेरा नहीं।
साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा संसार मुसम्बर के समान है जिसे खाने से व्यक्ति की मौत तो नहीं होती लेकिन संसार के सुख उससे भी कड़वे हैं। सांसारिक सुख दिखने में सुहाने और भोगने में रुचिकर प्रतीत होते हैं लेकिन परिणाम होता है चार गति और चौरासी लाख योनियों में भव भ्रमण। रविवार को सौभाग्यमल म. का पुण्य स्मृति दिवस तप-त्याग के साथ मनाया जाएगा।