चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा मनुष्य जितनी सावधानी से प्रवचन सुनेगा उसे उतना ही लाभ मिलेगा। परमात्मा की दृष्टि वाणी सभी के जीवन में आलोक भर देती है। ध्यान केंद्रीय करके प्रवचन सुनने से धर्म और पाप के मार्गों का अंतर पता चलता है।
दोनों के अंतर को समझने के बाद व्यक्ति पापों से मुक्त हो सकता है। ऐसा तभी संभव होगा जब लोग समय निकाल कर प्रवचन में आकर परमात्मा की वाणी सुनें। मनुष्य को प्रवचन सुनने से वंचित नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक शब्द भी जीवन में बदलाव कर सकता है। गटर के पानी का स्वच्छ होना बहुत ही कठित होता है लेकिन वहीं पानी अगर गंगाजल में मिल जाता है तो शुद्ध हो जाता है।
उसी प्रकार जीवन को सफल बनाना है तो सज्जनों की संगति रखें। जैसी संगति होगी वैसा ही जीवन का विस्तार होता चला जाएगा। मनुष्य ने जीवन में दिखावा बहुत कर लिया अब भावित होकर धर्म, तप करना चाहिए तभी जीवन में बदलाव आ पाएगा।
सागरमुनि ने कहा मनुष्य को धर्म के मार्ग पर बढऩे के लिए किसी प्रकार का विलंब नहीं करना चाहिए। संयम और तप करने से जीवन के सभी पाप कटते है और अंधकार पूरी तरह से दूर हो जाता है। तप मनुष्य के आत्मा को पवित्र बनाकर प्रकाश की तरह प्रकाशित करता है।
अंधकार व्यक्ति के आत्मा में होता है और इसे दूर करने के लिए आत्मा में प्रकाश लाना चाहिए जिसे तप और संयम के जरिए ही किया जा सकता है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।