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ज्ञान वाणी

संयम की साधना कहीं संभव है तो इसी मानव चोले में: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

संयम की साधना कहीं संभव है तो इसी मानव चोले में: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने पक्षीतीर्थ, तिरुकुंडी स्थित जैन स्थानक में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जिंदगी में कोई प्रियतम व्यक्ति है या नहीं है। यदि है तो उससे संभलकर रहना। पूरे संसार का इतिहास याद करोगे तो एक खतरनाक सत्य पता चलेगा कि प्रियतम व्यक्ति ही सबसे खतरनाक होता है। यह अलग बात है कि हम किसके प्रियतम बनना चाहते हैं या बनाना चाहते हैं।

दशरथ को कैकेयी सबसे अधिक प्रिय थी लेकिन उनके लिए वही सबसे ज्यादा अप्रिय परिणाम मिला। सूर्यकांता रानी राजा प्रदेशी की बहुत प्रिय ािी लेकिन उसी ने उसे विष दिया। यह मनुश्य के संसार का कड़वा सच है कि जिसको-जिसको प्रियतम बनाया वही प्राण का प्यासा बना। इसी लिए धर्म आपसे आग्रह करता है कि अपना प्रियतम किसी से करना है तो देव, गुरु और धर्म से करना, ये दगाबाज नहीं होते हैं। बाकी संसार में जहां कहीं भी आप प्यार में इन्वेस्टमेंट करोगे तो वह कभी न कभी नफरत में बदलेगा ही। इस चक्र को आप रोक नहीं सकते हैं। चाहे व्यक्ति हो, चाहे वस्तु हो। यही संसार का स्वभाव है कि जहां भी तुमने इसे एक्सट्रीम वेल्यू दी तो वह आपके लिए जहर बन जाता है।

अहिंसा भी चाहिए, संयम भी चाहिए और साथ में तप भी चाहिए तभी धर्म मंगल होता है। सबसे कठिन कुछ है तो संयम। संयम की साधना कहीं संभव है तो इसी मानव चोले में संभव है। यह संयम ही है जो आपको दुर्घटना से बचा सकता है। खाने में संयम नहीं रहा तो पेट में और बोलने में संयम नहीं रहा तो बाहर झगड़ा शुरू हो जाता है। आदमी को सबसे ज्यादा बुरा संयम ही लगता है। वह स्वयं भी परेशान होता है और साथ वालों को भी परेशान करता है। कितनी ही अच्छी भावना हो लेकिन सीमा से बाहर कदम रखते ही बाहर रावण ही खड़ा मिलेगा। फिर कोई बचाने नहीं आ सकता। बचाव यही है कि सीमा के अंदर रहा जाए, संयम से रहा जाए। पहल कदम हम उठाते हैं और बाद में हम पर पूरा कंट्रोल हम पर असंयम करने लगता है।

देवताओं के पास असीमित शक्ति है लेकिन फिर भी वे दीक्षा नहीं ले सकते, तप नहीं कर सकते, नियम ग्रहण नहीं कर सकते। तिर्यंच साधु नहीं बन सकता लेकिन श्रावक बन सकता है। नारकी के जीव और देवता संयम नहीं ले सकते। जिसने पच्चखान नहीं लिए वे नारकी में ही जाते हैं। मानव जीवन ही ऐसा है जिसमें व्यक्ति

बिना श्रद्धा के भी यदि अभवी जीव पच्चखान लेता है तो वह देवलोक में जाता है और इच्छा और श्रद्धा के साथ पच्चखान ले ले तो वह मोक्ष में जा सकता है। इसलिए इच्छा या भावना हो या न हीं हो तो भी अपने परिवार में पच्चखान और धर्म नियम पालन की परंपराएं चालू करें। उनका टिकिट आपको नरक का करना है, देवलोक का करना है या मनुष्यगति का करना है। अपने बेटों के लिए स्कूल तय करना और उसका रिश्ता तय आपको करना है कि आप कहां पर करते हैं। तय कर लें कि मेरे परिवारजन कोई भी नरक के रास्ते में न जाएं। जो पच्चखान लेकर आयुष्य पूर्ण करे वह नियम, व्रत और मर्यादा का पालन करता है वह यहां रहकर भी स्वर्ग में है और मरने के बाद भी स्वर्ग में जाता है।

असंमय में रहते हुए हम जिंदगी के हर क्षेत्र में रावण के कब्जे में चले जाते हैं। रावण स्वयं भी संयम में नहीं रहता और दूसरों को भी संयम में नहीं रहने देता। इसे अपनी जिंदगी में सदैव याद रखें। खाने में नमक संयमित रहेगा तो ही स्वाद बना रहेगा। यदि परिवार का माहौल संयम का हो जाए तो सबके लिए संयम बहुत आसान है, नहीं तो बहुत मुश्किल है। अपने जीवन में खाने और बोलने दोनों में संयमित रहें, उनोतरी तप करें तो आपका जीवन संयमित होगा और अनेक समस्याओं से बच जाएंगे।

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