जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में आयोजित आध्यात्मिक चातुर्मास सानंद सफलतापूर्वक संपन्न करने के पश्चात जयधुरंधर मुनि, जयकलश मुनि, जयपुरंदर मुनि ने वेपेरि स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन से प्रथम विहार कर बिन्नी मील नार्थ टाउन जैन स्थानक में प्रवेश किया। मुनिवृंद के विहार में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। लोगों ने सजल आंखों से मुनिवृंद को भावभीनी विदाई दी।
इस अवसर पर जयधुरंधर मुनि ने कहा जिस प्रकार एक महिला को हार रूपी आभूषण प्रिय होता है, वैसे ही संतों को विहार प्रिय होता है। जीवन चलाने के लिए आहार की आवश्यकता पड़ती है, तो संयमी जीवन की निर्दोष निर्वाह के लिए विहार अनिवार्य है।
भगवान के बताए विधि विधान के अनुरूप साधु – साध्वी वर्षावास के उपरांत स्थान परिवर्तन करते हैं। बहता हुआ पानी जिस तरह निर्मल होता है, उसी तरह साधु भी विचरते हुए पावन रहते हैं।
किसी स्थान विशेष या व्यक्ति विशेष पर लगाव एवं राग भाव में वृद्धि ना हो इसीलिए भगवान महावीर ने कार्तिक पूर्णिमा की अगले दिन विहार करने का विधान बताया है। यदि सूर्य एक स्थान पर अवस्थित हो जाए गमन ना करें तो संसार में एक स्थान पर तो प्रकाश होगा पर अन्यत्र अंधकार व्याप्त हो जाता है।
इसी प्रकार साधु के सम्मान ज्ञान नाश करने वाले दिवाकर का एक ही स्थान पर अवस्थित हो जाना स्वस्थ समाज के लिए अभिशाप होता है। गमन और आगमन यह तो प्रकृति का नियम है। कहीं से गमन होने पर शोक होता है तो अन्यत्र आगमन होने पर हर्ष की लहर छा जाती है।
मुनिवृंद ने श्रावक – श्राविकाओं को प्रेरणा दी कि जिस तरह से चातुर्मास काल में उन्होंने तप- त्याग, ज्ञान ध्यान की ज्योति जगाई थी, उसी तरह आगे भी धर्म आराधना करते रहे । बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने मुनिवृंद के साथ विहार सेवा का लाभ लिया।
जयमल जैन युवक परिषद एवं नॉर्थटाउन युवा संघ तथा महिला मंडल के सदस्यों ने जयकारों के साथ आकाश को गुंजायमान कर दिया। मुनिवृंद के सानिध्य में गुरुवार 14 नवंबर को आचार्य जयमल का 290 वां दीक्षा दिवस प्रातः 9:30 बजे से सामायिक तेले की आराधना के साथ बिन्नी मिल में मनाया जाएगा।