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संबोधि साधना स्वयं को जानने देखने और पहचान की कला है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

संबोधि साधना स्वयं को जानने देखने और पहचान की कला है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैंl

बंधुओं जैसे कि संबोधि साधना स्वयं को जानने देखने और पहचान की कला हैl दुनिया में आदमी एक ही काम करता है दूसरों को पहचानने का व्यक्ति जिंदगी के जितने पाल दूसरों को जानने के लगता हैl उसका चौथा हिस्सा भी अपने को जानने के लगा दे तो शायद इस जीवन में सब कुछ उपलब्ध हो जाएl

उसके जीवन का सपना होता है आदमी चंद्रलोक तक गया वापसी में मिट्टी के डेली लेकर आयाl सबसे पहला इंसान जो चंद्रलोक तक गया कहते हैं उसके जाने में दो अरब डालर खर्च हुए चंद्रलोक से लाया क्या मिट्टी के डेली व्यक्ति अगर अंतर लोग में उतर जाए तो एक कोड़ी भी खर्चा नहीं होगा और आते समय पता नहीं यह कितने हीरे लेकर आएगाl

 संबोधि साधना हमें जो बेहतरीन तरीके से जीने का मार्ग प्रदान करते हैंl वह इस समय बहुत पूर्वक जागरुकता पूर्वक जीना विवेक पूर्वक जीना संबोधि का अर्थ हैl जीवन के प्रत्येक कृत्य को होश और जागृत होते साथ संपन्न कराना मुझसे कोई पूछे कि संबोधित साधक को जिंदगी कैसे जीनी चाहिए तो मैं एक वाक्य में यही कहूंगा जिससे कोई महिला पापड़ सकती हैl

 याद करें जब हम पापड़ सकते हैं तो हमारा सारा ध्यान पापड़ ही होता है अगर कोई आवाज भी दे दे तो भी हमारा ध्यान पापड़ पर ही होता है और ध्यान पापड़ पर से हट गया जल गया बस जिंदगी के लिए इतनी सी प्रेरणा काफी हैl संबोधी साधक के लिए अपनी सजगता से महिला पापड़ से का करती हैl उतनी सजगता से अगर कोई व्यक्ति जिंदगी जी ले तो बेड़ा पार होना उसका तय हैl संबोधि साधना जीवन का यह विवेक देती हैl जीवन का हर कार्य ध्यान पूर्वक हो एवं मेहमानों का आवागमन चालु ह इन्हीं शुभ भाव के साथl

जय जिनेंद्र, जय महावीर, कांता सिसोदिया, भाईंदर

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