कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जिस महानगर, नगर, गांव आदि में साधुओं को चतुर्मास के लिए समागमन होता है, उसका तो सौभाग्य जागृत हो जाता है। साधु स्वयं भी सन्मार्ग पर चलने वाले और दूसरों को भी सन्मार्ग पर चलने के लिए उत्प्रेरित करने वाले होते हैं। साधु के तो दर्शन को ही मंगल माना गया है और जब साधु के चरणस्पर्श का अवसर प्राप्त हो जाए तथा उनके मंगल प्रवचन का सुअवसर मिल जाए तो फिर तो लाभ ही लाभ की बात हो जाती है।
साधुओं का समागमन बहुत अच्छा होता है। इसलिए कहा भी जाता है कि पुत्र, धन-धान्य, संपदा तो पापी के पास भी मिलते हैं, किन्तु साधुआंे का समागम और हरी कथा प्राप्त होना बहुत सौभाग्य की बात होती है। भगवान महावीर महावीर राजगृह में विराज रहे हैं। भगवान महावीर के पास अमीर, गरीब और दुःखी लोग पहुंच रहे हैं।
गृहस्थ जीवन में तनाव, दुःख, कष्ट आते रहते हैं। गरीब है तो सबसे पहले उसे रोटी की चिंता होती है। रोटी मिलने लगती है तो उसे कपड़े की चिंता होती है। कपड़ा मिलने लगे तो फिर वह मकान के विषय में चिंतित होता है और फिर आभूषण, शादी-ब्याह करता है। वैवाहिक जीवन आरम्भ होने के बाद संतान की चिंता होती है, संतान की प्राप्ति हो और संतान अनुकूल न हो तो उसकी चिंता और अनुकूल हो तो उसके विवाह आदि की चिंता लगती रहती है अर्थात् गृहस्थ जीवन में समस्याओं का क्रम चलता रहता है।
अमीर है तो उसे धन को बचाने की चिंता, चोरी होने का भय, व्यापार का चिंता भी होती है। यों कहा जाए तो गृहस्थ का जीवन कठिन होता है। साधु का जीवन तो मानों सरल है। साधु हमेशा शांति में रहता है। भगवान महावीर के पास शोक संतप्त लोग शांति प्राप्ति की ईच्छा से आते। उनकी मंगलवाणी का श्रवण कर अपने जीवन की समस्याआंे का समाधान प्राप्त करते।
आचार्यश्री ने व्याधि, आधि और उपाधि का वर्णन करते हुए कहा कि व्याधि-शारीरिक बीमारी, आधि-मानसिक बीमारी और उपाधि भावात्मक बीमारी से गृहस्थ परेशान होता है। साधुओं की मंगलवाणी से इनका निदान हो सकता है। भगवान महावीर के प्रवचन का श्रवण करने लोग आते। प्रवचन श्रवण के उपस्थित होना भी अच्छी बात होती है।
व्यक्ति जितने देर प्रवचन में उपस्थित रहता है, वह अनेक सावद्य कार्यों से और पापों से बचा रहता है। इस कारण उसका सहज ही पापों से बचाव हो सकता है। प्रवचन श्रवण से मन भी शुभ हो सकता है, ज्ञान का विकास होता है और कितनी बार तो समस्याओं का समाधान सहजतया ही प्राप्त हो सकता है। प्रवचन श्रवण से तो आदमी कई बार श्रमण बनने की दिशा में भी आगे बढ़ सकता है। स्वयं तीर्थंकर भगवान महावीर का राजगृह में पधारना लोगों के लिए परम सौभाग्य की बात थी।
आदमी सुनने के बाद उसे अपने जीवन में उतार ले तो प्रवचन श्रवण का और अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार कितने-कितने लोग आते थे और भगवान महावीर के दर्शन और प्रवचन से लाभान्वित होते थे। उक्त मंगल प्रवचन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ ‘सम्बोधि’ पर आधारित अपने मंगल व्याख्यान माला के अंतर्गत श्रद्धालुओं को प्रदान की।
मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने अपने कुछ विहार मार्ग की घोषणा करने के उपरान्त 14 जून 2020 को हैदराबाद की सीमा में प्रवेश करने की घोषणा की। हैदराबाद-चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री प्रकाश बरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। भगवान महावीर एजुकेशन फाउण्डेशन ट्रस्ट के श्री प्रवीण भाई मेहता और संजय जैन ने भी अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने प्रबन्धन के लोगों को मंगल प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के समक्ष जिनागम पुस्तक को श्री विजयराज सुराणा, श्री अशोक संचेती आदि ने लोकार्पित की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में दिल्ली से पहुंचे संघ की ओर से दिल्ली सभाध्यक्ष श्री तेजकरण सुराणा, अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री अशोक संचेती व श्री सुखराज सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। दिल्ली श्रावक-श्राविका समाज ने गीत के माध्यम से पूज्यचरणों में अपनी अभिवंदना अर्पित की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज भी अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।