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ज्ञान वाणी

संत निराकार होता है

संत निराकार होता है

आचार्य शुभचंद्र की गुणानुवाद सभा

चेन्नई. संत निराकार होता है। शुभचंद्र जहां विराजमान होते थे सभी उनके गुणों से लाभान्वित होते थे।  वे सरल और वात्सल्य के प्रतीक थे। श्री अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्नाथकवासी जयमल जैन श्रावक संघ और श्री जयमल जैन राष्ट्रीय युवक परिषद के तत्वावधान में रविवार को वेपेरी स्थित मरलेचा गार्डन में आचार्य शुभचंद्र की गुणानुवाद सभा में प्रवीणऋषि ने कहा कि आचार्य शुभचंद्र्र को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने संप्रदाय से बाहर जाकर काम किया और संप्रदाय से बाहर जाकर करने वाला संत असली होता है। कोई व्यक्ति आचार्य शुभचंद्र का एक भी गुण अपने जीवन में उतार ले तो मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा। उन्होंने समाज में अपनी विशिष्ट जगह बनाई है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेषऋषि, उपप्रवर्तक विनयमुनि, उपप्रवर्तक गौतममुनि की निश्रा में गत दिनों देवलोक गमन हुए आचार्य शुभचंद्र की गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया।

उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा कि वे सौभाग्यशाली रहे कि  आचार्य सम्राट शुभचंद्र से पांच बार मुलाकात हुई। जब-जब उनसे मुलाकात हुई मैं उनके गुणों से प्रभावित हुआ। उनका व्यवहार अति सरल और सहज था। उनसे एक बार कोई मुलाकात कर ले तो वे गुणवान हो जाएंगा। मैं उनके पांच गुणों से प्रभावित हूं जिसमें हृदय से सरल, सुगम चरित्र, वाणी व्यवहार कुशल, मधुर आवाज, नम्रता और सहज भाव। उनमें विनयभाव कूट-कूट कर भरे थे।

जैन श्रमण संघ और साहुकारपेट जैन संघ की ओर से भी उनको श्रद्धांजलि अर्पित की गई। पारसमल गादिया ने स्वागत भाषण दिया। धर्मीचंद लुंकड़ ने उनका जीवन परिचय दिया। धर्मीचंद बोहरा ने बताया कि  वे सोलवें तीर्थंकर शांतिनाथ भगवान की प्रति मूर्ति थे। सुगालचंद सिंघवी ने बताया कि वे सत्य और अहिंसा के सच्चे आराधक थे। प्रवीणभाई मेहता ने बताया कि गुणगान और उनकी सेवा भावना अत्यंत दुर्लभ थी। कन्हैया लाल  झामड़ ने उनकी भक्तिभावना और सरल मना का गुणगान किया। विमलचंद सांखला ने उनका स्नेह भावना व उदारता की हृदय से प्रशंसा की। अभय श्रीश्रीमाल ने उपध्याय प्रवीणश्रषि चातुर्मास समिति की ओर से श्रद्धासुमन अर्पित किए। तारा चंद दुगड़ व कैलाशमल दुगड़ ने भी अपने भाव व्यक्त किए। मंच का संचालन ज्ञानचंद मुणोत और केएल जैन ने किया।

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