माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के नमस्कार सभागार में ठाणं-सूत्र के छठे अध्याय के छासठवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि तपस्या के कुल बारह भेद बतायें है। छह बाह्य तप और छह आभ्यान्तर तप। आभ्यान्तर तप जो भीतर से जुड़ा है। उसका संबन्ध न आहार से है और न आसन से। भीतरी तप छह प्रकार के बताये गए है।
प्रथम है प्रायश्चित – दोष विशुद्धि का उपाय होता है प्रायश्चित। किसी से गलती न हो, ऐसा इंसान छठे गुणस्थान तक तो कोई दिखाई देता है, संभव नहीं है। गलती, दोष, अपराध, अतिक्रमण, व्यतिक्रम से, शोधन के लिए है प्रायश्चित| प्रायश्चित एक आध्यात्मिक चिकित्सा है। प्रायश्चित दाता एक चिकित्सक होते हैं। जैसे एक डॉक्टर मरीज की स्थिति देखकर इलाज करता है, वैसे ही आध्यात्मिक जगत में दोष सेवन करने वाला, आध्यात्मिक मरीज होता है।
प्रायश्चित देने वाले डॉक्टर प्रायश्चित से उसकी स्थिति देखकर उपाय करते हैं, चिकित्सा करते हैं। डॉक्टर दो प्रकार के होते हैं फिजीशियन और सर्जन। फिजीशियन चीरफाड़ नहीं करता है, सर्जन करता है। फिजीशियन देखकर दवा बताता है।
प्रायश्चित के जगत में भी दो प्रकार के चिकित्सक होती है। दवा की तरह है – तप, नवकारसी जप स्वाध्याय आदि। कहीं – कहीं चीरफाड़ की अपेक्षा रहती है। तब प्रायश्चित दाता चीरफाड़ करते हैं। एक साधु से बड़ी गलती हो जाये या कारण विशेष से कार आदि का उपयोग करना पड़ जाये, तो उसके लिए कुछ समय के लिए उनका संयम – पर्याय कम कर दिया जाता है। गलती या दोष का शौधन, तपस्या या प्रायश्चित के द्वारा किया जाता है| कभी-कभी और बड़ी गलती हो जाती है, तो उस साधु को नई दीक्षा देकर शुद्ध बनाया जाता है।
स्वाध्याय करने से होती भाव शुद्धि
आचार्य प्रवर ने आगे बताया कि आभ्यान्तर तप का दूसरा प्रकार है, विनय – अरिहंतो, सिद्धो, साधुओं और ज्ञान की भक्ति करना, विनय करना, इससे भी कर्म कटते हैं। विनय भी एक तप है। तीसरा तप है वैयावृत्य – सेवा करना| किसी तपस्वी या रुग्ण साधु की अहोभाव से सेवा करना। उनको सुलाना, बैठाना, उत्सर्ग कराना, आहार व दवा लाना। सेवा से महान कर्म निर्जरा होती है। तपस्वी साधु, बाल मुनि, पदासीन एवं वृद्ध की सेवा करना भी एक तप है। आभ्यान्तर तप का चौथा प्रकार है – स्वाध्याय| इसे भी कर्म कटते हैं| चौबीसी जैसे ग्रंथ को याद करना, चीतारना, पच्चीस बोल याद करना, व्याख्यान देना, वाचना, पृच्छना, पुनरावर्तन करना, पढ़ाना, प्रश्न करना, उत्तर देना ये स्वाध्याय के प्रकार हैं| जो जाना है, उस पर चिंतन करना भी स्वाध्याय हैं| स्वाध्याय करने से भाव शुद्धि होती है, ज्ञान का प्रकाश मिलता हैं|
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि आभ्यान्तर तप का पांचवा प्रकार है ध्यान| शरीर, वाणी और मन से स्थिर हो, एकाग्र होकर एक बिंदु पर मन को केन्द्रित करना ध्यान हैं| आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान अशुभ हैं| धर्म ध्यान और ध्यान शुभ है, इनसे कर्म निर्जरा होती हैं| छठा प्रकार है व्युत्सर्ग| कायोत्सर्ग की साधना, कषायों को छोड़ने की साधना| विशेष भूमिका पर जाकर, गण को छोड़ देना भी व्युत्सर्ग हैं| इस तरह ये छह आभ्यान्तर तप हैं, इनकी साधना करें|
आलोचना भी है प्रायश्चित
आचार्य श्री ने आगे कहा कि तपस्या, कर्म काटने का उपाय हैं| तपस्या के साथ पुण्य का भी बंध होता हैं| बाल लीला वाला बालक, अपने माता पिता के सामने, निर्विकल्प बात कर लेता है, ऐसे ही गुरु के सामने साधु, कोई गलती हो गई हो, तो ॠजुता से, सरलता से बता दे, तो उसे शुद्धि कर, ठीक किया जा सकता हैं| आलोचना भी एक प्रायश्चित हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि सेवा, कर्म निर्जरा का साधन तो है ही, पर यह संगठन की मजबूती का भी साधन हैं| साधु हो या गृहस्थ का परिवार, सेवा अच्छी होनी चाहियें, अन्यथा एकत्व भाव कम हो सकता हैं| छहों आभ्यान्तर तप कर्म काटने के साधन हैं, इनका यथोचित आसेवन करना चाहिए।
गुरु होते गण के भाल : साध्वी प्रमुखाश्री
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का सुंदर वाचन करते हुए कहा कि जो साधु संयम में रम जाते हैं, वे स्वर्ग के सुखों का अनुभव करते हैं| जो संयम से च्युत हो जाते हैं, उनका जीवन नरक के समान बन सकता हैं| प्रमोद भावना करने से कर्म कटते हैं, पाप दूर होते हैं| गुरु गुणों के निलय होते हैं, गण के भाल होते हैं| गण और गणक में जो एकीभाव होता हैं, उसमें आश्चर्य नहीं हैं|
समणी वृंद द्वारा समूह गीत मुख मुख पर मुखरित, चेन्नई चातुर्मास है … की भावपूर्ण प्रस्तुति से पुरा सभागार भाव विभोर हो गया| महिला मंडल से संगीता अाच्छा, व्यवस्था समिति से पीआरओ श्रीमती माला कातरेला, कैंटीन संयोजक अनिल सेठिया, मार्गदर्शक सम्पतमल छल्लाणी, सहयोगी डॉ सोहनलाल गादिया ने अपने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी| माधुरी, टीना चोरडिया बहनों ने मंगलभावना गीत प्रस्तुत किया| डॉ सोहनलाल गादिया की चातुर्मास में दी गई विशिष्ट सेवाओं के लिए व्यवस्था समिति महामंत्री श्री रमेश बोहरा, विमल सेठिया, धनराज धारीवाल, तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा ने अभिनन्दन किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
स्वरूप चन्द दाँती
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति