विजयनगर स्थानक भवन में साध्वीप्रतिभाश्री जी ने ध्यान से पहले संकल्प लेने के आगे विवेचन करते हुए बताया कि संकल्प लेने से इन्द्रियों पर वश पाया जा सकता है जिससे संयम की साधना होती है। जीवन मे यदि संयम नहीं तो हर जगह कर्मबंध का खतरा बना रहता है ठीक उसी प्रकार जैसे खूबसूरत पर बिना ब्रेक की गाड़ी में बैठने पर होता है।संयम व संकल्प जीवन मे नदी के दोनो किनारे के समान है यदि ये मझबूत हो तो नदी रूपी जिंदगी आराम से बहती रहती है।
साध्वीश्री ने कहा कि हमे जीवन को संयम में लाने के लिए प्रत्याख्यान लेना आवश्यक है चाहे जीवनपर्यंत उन वस्तुओं का उपयोग नहीं भी करते हों, अन्यथा उनका जीवन में फल नहीं मिलता है जैसे कि दरवाजा तो बन्द किया पर चुटकनी नहीं लगायी तो उसका कोई औचित्य नहीं है।
साध्वी दीक्षितश्री ने आगमों में नारी के वर्णन को सुनाते हुए बताया कि पहले की नारी व आज की नारी में कितना परिवर्तन हो गया है गिरती हुई मर्यादाओं से नारी में आये बदलाव पर चिंता जाहिर की। साध्वी प्रेरनाश्री ने गुरुवर पर गीतिका प्रस्तुत की।