चेन्नई. मनुष्य की श्रद्धा श्रीपाल और मैना सुंदरी की तरह होनी चाहिए। अरिहंत आराधना द्वारा कषायों का ज्वर उतरता है। इससे विषयों की वासना शांत होती है और कर्मरूपी कीचड़ साफ होने लगता है।
एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि गुणों से युक्त मनुष्य अरिहंत पद को प्राप्त करते हैं। नवपद में दो देव तीन शुक्ल चार पद धर्म के हैं। इसमें भी मंत्र, तंत्र और यंत्र का समावेश हो जाता है। उन्होंने कहा कि ग्वाला पशुओं का देखेरेख कर संरक्षण करता है, जो कि इस जन्म का ही रक्षक होता है।
भटकते हुए जीव को सही रास्ता बताने वाले अरिहंत प्रभु का वर्ण श्वेत कहा गया है, जो कि शुभता का प्रतीक है। इस पद के सात अक्षरों के जाप से पचास सागरोपम के नरक के दुख दूर हो जाते हैं।
साध्वी सुप्रतिभा ने कहा जीवन में जो महत्व श्वास का है वही महत्व विश्वास का है। ताकत ना तो भगवान में होती है और न ही भक्त में होती है। यह मनुष्य द्वारा किए गए भक्ति में ताकत होती है। उन्होंने कहा भगवान किसी का कल्याण नहीं करते लेकिन उनकेबिना किसी का कल्याण नहीं होता।