भारत ऋषियों, मुनियों, महात्माओं का देश है। एक से बढ़कर एक ऋषि-मुनि अपने आचार, विचार और वाणी से यहां के जनमानस का मार्गदर्शन करते रहे हैं। मुनियों की इसी परम्परा में एक महामुनि हुए – उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्रुताचार्य गुरुदेव श्री अमर मुनि जी महाराज! श्रद्धेय अमर मुनीश्वर ने अपने उदात्त आचार, विचार और धर्म-प्रचार से मानव-समाज को एक नई दिशा दी।
वि-सं- 1983, भादवा सुदी पंचमी (सन् 1936) को अविभाजित भारतवर्ष के क्वेटा बलूचिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) में एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय कुल में श्री अमर गुरुदेव का जन्म हुआ। सद्गृहस्थ श्री दीवानचन्द जी मल्होत्र की अर्द्धांगिनी श्रीमती बसंती देवी की रत्नकुक्षी से जन्म लेकर बालक अमरनाथ लुधियाना में विराजित आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म.सा. के सान्निध्य में आए। सद्गुरु का पारस-स्पर्श पाकर अमरनाथ शुद्ध स्वर्णत्व को उपलब्ध हुए। आचार्य श्री के दिशा-दर्शन में अक्षय गुण भण्डार गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म.सा. ने उस शुद्ध स्वर्ण को मुनित्व के मुकुट के रूप में घड़ा। वि.सं. 2008, भादवा सुदी पंचमी (सन् 1951) के दिन सोनीपत शहर में गुरुमुख से दीक्षा-मंत्र ग्रहण कर अमरनाथ ‘अमर मुनि’ बने!
समय साक्षी है – पंजाब प्रांतीय जिनशासन की अग्रिम अर्ध सदी का इतिहास श्री अमर मुनीश्वर की महिमाओं, अर्हताओं और यशोगाथाओं से अनुगुंजित रहा। एक महान मुनि के रूप में वे लोक-आस्थाओं में रच-बस गए! वे एक ओजस्वी और रस-सिद्ध प्रवक्ता थे। आज भी हजारों लोग गवाह हैं कि – जब वे प्रवचन करते थे तो चलते हुए बाजार ठहर जाते थे। जाति, धर्म, सम्प्रदाय के भेद को भूलकर लोग उनके व्याख्यानों में उमड़-उमड़ कर आते थे। उन्हें सुनते हुए अग-जग को विस्मृत होकर भक्ति और भाव के तल-अतल में पैठ जाते थे।
‘दीप’ स्वयं जलकर प्रकाश बांटता है। अगरबत्ती स्वयं जलकर सुगंध फैलाती है। श्री अमर गुरुदेव भी स्वयं की साता-असाता से ऊपर उठकर अहर्निश लोक-कल्याण में समर्पित रहे। उनके सद्गुणों को सीमित शब्दों में समेटना संभव नहीं है। लोक-मंगल-हित उन द्वारा किए गए अनुष्ठानों का वर्णन सहस्रों लेखनियां भी नहीं कर सकतीं। मैं तो यहां किंचित् मात्र संकेत कर रहा हूँ –
अपनी धर्म-देशनाओं और प्रभावक प्रेरणाओं द्वारा उन्होंने लाखों लोगों को कुव्यसनों से मुक्त किया।
लाखों जैन-अजैन लोगों को दैनिक धर्मध्यान, सामायिक, माला, प्रभु-स्मरण से जोड़ा।
अगणित परिवारों और अनेक समाजों से वैमनस्य को मिटाकर प्रेम के प्रसून खिलाए।
हजारों असहाय-जरूरतमंद परिवारों को उनकी सामाजिक प्रेरणा से रोजगार मिले।
सैकड़ों स्थानों पर उनकी प्रेरणा से अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें-कॉपी एवं पाठ्य सामग्री तथा फीस आदि प्रबंधन के कार्यक्रम शुरू किए गए जो आज भी निराबाध चल रहे हैं।
उनकी प्रेरणा से उत्तर भारत में सैकड़ों, धर्मस्थानकों, धर्मशालाओं, अस्पतालों, डिस्पेंसरियों, पुस्तकालयों, सिलाई-सेंटरों आदि का निर्माण हुआ। आज भी ये संस्थाएं जन-सेवा के कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रही हैं।
श्रद्धेय गुरुदेव ने ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक अमूल्य ग्रन्थाें की रचना की और उनका समाज में वितरण कराया।
गुरुदेव की सबसे बड़ी देन है – जैनागमों का हिन्दी-अंग्रेजी में अनुवादन एवं ललित चित्रें सहित प्रकाशन कराना। गुरुदेव श्री के इस महान श्रुत-यज्ञ को केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी आदि अनेक देशों में भी भूरि-भूरि प्रशंसा प्राप्त हुई।
गुरुदेव श्री द्वारा प्रारंभ किया गया यह श्रुत-यज्ञ आज भी द्रुत गति से गतिमान है। श्री अमर गुरुदेव असंख्य गुण-निधान हैं। उन गुण-निधान श्रुत स्वयंभूरमण महामुनीश्वर का हीरक जयंती पुण्य पर्व (गुरु अमर संयम अमृत वर्ष – 2024-2025) हमारे समक्ष है। इस पुण्य प्रसंग पर महामहिम गुरुदेव श्री के अतिशय व्यक्तित्व एवं महिमामयी कृतित्व का कोटि-कोटि अभिनन्दन!
सभी गुरुभक्तों से साग्रह निवेदन है कि इस पुण्य-प्रसंग पर श्री अमर गुरुदेव को स्मरण करें! भक्ति-भाव से उनका गुणार्चन करें एवं उनके द्वारा शुरू किए गए लोक-कल्याणकारी अनुष्ठानों में अधिक से अधिक सहयोग प्रदान कर गुरु-भक्ति को सफल करें।
*-प्रस्तुति: डॉ- वरुण मुनि ‘अमर शिष्य’*