श्रुताचार्य साहित्य सम्राट वाणी भूषण आराध्य गुरुदेव पूज्य प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. की 11 वीं पावन पुण्य तिथि पर श्रमण संघीय उप प्रवर्तक पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. की पावन निश्रा में दक्षिण सूर्य ओजस्वी वक्ता डॉ. श्री वरूण मुनि जी म. सा. की सद्प्रैरणा से श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ आरकोणम के तत्वावधान में गुरू अमर पुण्य स्मृति महोत्सव विविध धार्मिक आयोजनों व जन कल्याणकारी कार्यक्रमों के द्वारा मनाया गया।
पूज्य श्री अमर गुरुदेव के पावन जीवन पर प्रकाश डालते हुए ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. श्री वरूण मुनि जी म. सा. ने फरमाया कि गुरुदेव के जीवन में नम्रता का एक विशेष गुण था । वे 32 आगमों के जानकार थे । भारतीय, जैन, बोध्द, पाश्चात्य, अनेक धर्म दर्शनों का उन्होंने गहन अध्ययन किया था, गीता, वेद, पुराण, कुराण, बाइबिल, गुरूग्रंथ, साहिब, जैन आगम, उपनिषद् सभी धर्मों पर, सभी धर्म ग्रंथों पर पूज्य गुरुदेव प्रवचन किया करते थे, लेकिन उनके जीवन में अपने ज्ञान का कभी अभिमान नहीं था, इतने ऊच्च कोटी के प्रवचनकार होते हुए भी अहं का भाव कभी उनके मन में नहीं आया।
गुरुदेव के जीवन का दूसरा सदगुण था नियमितता । गुरुदेव का हर कार्य नियमबध्द होता था । प्रतिदिन प्रात: अढ़ाई बजे गुरुदेव निद्रा त्याग देते और अपनी साधना में तल्लीन हो जाते । रात्री में बारह बजे के करीब विश्राम करते 24 घण्टे में केवल अढ़ाई या तीन घण्टे ही गुरुदेव निद्रा लेते थे । भोजन हो भजन हो साधन हो साधना हो या अन्य कोई भी जीवन की क्रिया हो प्रत्येक क्रिया में गुरुदेव के जीवन का अनुशासन नजर आता था और इस कारण भले ही संत साध्वियां हों या श्रावक श्राविकाएं जो भी गुरुदेव के पास आते वे स्वयं ही स्वत: ही अनुशासनबध्द हो जाते थे।
गुरुदेव के जीवन का तीसरा सद्गुण था निर्दोषता । गुरुदेव के जीवन में चारित्र की निर्मलता थी, वचन में सत्यता, काया में स्थिरता थी । महात्मा कबीर के शब्दों में ‘ज्यों की त्यों धर दिनि चदरिया’ । जैसे श्वेत चादर को गुरुदेव ने सन्यास के समय ग्रहण किया वैसे ही लगभग 54 वर्षों के संयम पालन के पश्चात् उस चादर को उतना ही श्वेत व धवल रखा कभी उस चादर पर कोई दाग नहीं लगने दिया ।उनका चारित्र गंगा के जल के समान निर्मल और पवित्र था।
गुरुदेव के जीवन का एक अन्य सद्गुण था उनकी निश्चलता मन वचन काया तीनों ही योग में गुरुदेव की स्थिरता रही उनके जीवन में चंचलता का कहीं भी नामोनिशान नजर नहीं आता था । गुरुदेव की चाल भी गजगति के समान गंभीर थी । जिसका मन निश्चल होता है उसकी काया में भी स्वत: ही निश्चलता आ जाती है । गुरुदेव के जीवन का एक और विशेष गुण था उनकी निर्लेपता । हालांकि उन्होंने सैंकड़ों मुमुक्षु आत्माओं को दीक्षा प्रदान की , सैंकड़ों संस्थाओं का उनकी प्रेरणाओं से निर्माण हुआ अनेकों धर्म ग्रंथों की उन्होंने रचना की । भले ही शिष्य हों या श्रावक हों, श्रध्दालु सद्गृहस्थ हों या संस्थाएँ हों किसी के प्रति भी उनके मन में आसक्ति का कहीं कोई भाव नहीं था । वे हमेशा निर्लिप्त रहे ऐसे महान् गुरुदेव के संयम – साधना व सद्गुणमय जीवन को हम नमन वन्दन अर्पित करते हैं।
मधुर गायक श्री रूपेश मुनि जी म. सा. ने गुरुदेव की आरती का गायन करवाया । विद्याभिलाषी श्री लोकेश मुनि जी म. सा. ने बताया कि गुरुदेव की पावन स्मृति में आरकोणम श्रीसंघ की ओर से नवकार महामंत्र का अखण्ड जाप, अन्नदानम् सामायिकव्रत की आराधना व गुणगान सभा का विशेष आयोजन किया गया।
इस सभा में चैन्नई से श्रीमान् सा हुक्मी राज जी मेहता , श्री प्रकाश जी भण्डारी , श्री प्रेमराज जी आबड , श्री अजित जी कोठारी , श्री महावीर जी नाहर आदि अनेक गुरू भक्त पधारे । श्रीमान् सा हुक्मी राज जी मेहता के कर कमलों द्वारा गुरुदेव की पावन स्मृति में श्री पदम अमर गुरुदेव स्मृति कीरिंग का लोकार्पण किया गया एवं मेहता परिवार की ओर से इस समारोह में पधारे सभी श्रध्दालु भाई बहनों को प्रभावना प्रदान की गई।
संघ के अध्यक्ष महोदय श्रीमान् सा पदम जी सकलेचा ने बताया कि हमारे संघ का ये अहोभाग्य है ऐसे महान् पुरुषों की , गुरू भगवन्तों की पुण्य स्मृति मनाने का हमें ये अवसर प्राप्त हुआ है और उन्होंने चैन्नई से पधारे सभी गुरू भक्तों का अपने श्रीसंघ की ओर से स्वागत् अभिनंदन किया ।
श्रमण संघीय उप प्रवर्तक पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. के मुखार्विंद से मंगल पाठ द्वारा इस समारोह का समापन हुआ।
गौरतलब है कि पूज्य गुरू भगवन्त बुध्दवार को आरकोणम से पुन: चैन्नई की ओर प्रस्थान प्रारंभ करेंगे । आरकोणम से तिरूवल्लूर , पटाभिराम , आवडी , अंबत्तूर होते हुए चैन्नई के विभिन्न संघों को फरसने की संभावना है।