आचार्य श्री के मुखारविंद से जन्म वांचन सुनकर झूम उठे श्रद्धालुगण
श्री सुमतिवल्लभ जैन मूर्तिपूजक संघ में पर्युषण महापर्व के दौरान शनिवार को पांचवें दिन भगवान महावीर के जन्म वांचन महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। आचार्य देवेंद्रसागरसूरिजी के निश्रा में दोपहर को कल्पसूत्र का वांचन प्रारंभ हुआ। इसके पश्चात भगवान महावीर के माता त्रिशला के गर्भ में आने से पूर्व देखे गये चौदह स्वपनों की बोली लगाई गई जिसमे धर्म प्रेमियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इन सभी सपनों को लाभार्थी परिवारों द्वारा उतारा गया। वहीं कल्पसूत्र वांचन के दौरान भगवान महावीर के चरित्र एवं जन्म वांचन का प्रसंग आया तो पूरा माहौल भगवान महावीर के भक्तिरस से सराबोर हो गया।
मंदिर परिसर में उपस्थित अपार जनमेदनी के समक्ष जन्म वांचन करते हुए ओर भगवान महावीर का जन्म की विशेषताएँ बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि परमात्मा के जन्म के समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा बुध दोनों कभी भी एक साथ उच्च स्थान में नहीं हो सकते, किंतु विश्व के समस्त जीवों के प्रति करुणा के प्रभाव से भगवान के जन्म समय यह चमत्कार होता है कि वेदनीय कर्मों के उदय के प्रभाव से नारकी के जीव को कभी शाता का अनुभव नहीं होता, किंतु प्रभुजी के जन्म के प्रभाव से इन जीवों को क्षणमात्र के लिए परम साता का अनुभव होता है। जब धूलिकण बैठ जाने के कारण दिशाएं अंधकार रहित बनीं, क्योंकि भगवान के जन्म के समय सर्वत्र उद्योत होता है।
कौए, उल्लूक, श्याम चिडिय़ाँ इत्यादि पक्षियों का जयघोष सर्वत्र अति उत्तम शगुन का सूचक करने लगे, पृथ्वी धन धान्य से निष्पन्न थी, जिससे देश के लोग सुखी थे और हर्षित हुए लोग प्रसन्न होकर रास-गीत इत्यादि आनन्द मना रहे थे, तब ठीक मध्यरात्रि के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में चंद्र का योग हुआ तब आरोग्य से युक्त त्रिशला माता ने भगवान महावीर को जन्म दिया। इधर, जन्म वांचन की थाली बजी वैसे ही जैन भवन में मौजूद श्रावक- श्राविकाओं ने अपने अपने स्थान पर खड़े होकर झूमने लगे।इसके पश्चात भाविको ने अक्षत उछाल कर तथा श्रीफल वधेर कर जन्म कल्याण के गीत गाए। साथ ही प्रभु महावीर का झुला झुलाते हुए महिलाएं मंगल गीत गा रही थी।