मुंबई, राष्ट्र-संत महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज और डाॅ. मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज के सान्निध्य में शांताकु्रज स्थित सवोय रेजिडंेसी के सुरेश जैन के आवास पर श्री पाश्र्व पदमावती महापूजन का भव्य आयोजन किया गया। इस महापूजन समारोह में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने पूजा के वस्त्रों में पूजन किया।
महापूजन के लाभार्थी सुरेश जैन के अनुसार घर, परिवार एवं शहर की सुख, शांति एवं समृद्धि की अभिवृद्धि के लिए आयोजित इस महापूजन समारोह में शरीक होने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु अलसुबह सवोय रेजिडेंसी पहुँच चुके थे। श्रद्धा और भक्ति में झूमते हुए श्रद्धालुओं ने सर्वप्रथम दिव्य मंत्रोच्चार के साथ दूध, जल, चंदन, अक्षत, गंध, फल, फूल आदि से पारसनाथ भगवान और पदमावती माताजी की अष्ट प्रकारी पूजा सम्पन्न की। इस अवसर पर संतप्रवर ने चमत्कारी एवं मनवांछित पूर्ण करने वाले पदमावती माता के इकतीसे का सामूहिक संगान करवाया। जब संतप्रवर ने पूजा की है बात प्रभुजी आज थाने आणो हैं…, मेरे सर पर रख दो प्रभुवर अपने ये दोनों हाथ देना है तो दीजिए जनम-जनम का साथ…, सपने में दर्शन दे गयो रे एक छोटो सो बालक…, रुम झूम करता पधारो म्हारा प्रभुजी, हो हो हो थांरा बालूड़ा जोवे है थांरी बात…, जैसे भजन सुनाए गए तो श्रद्धालु भक्ति में झूम गए। महापूजन के पश्चात् 27 दीपकों की भव्य महाआरती करने का लाभ भक्तों ने लिया।
इस अवसर पर राष्ट्र-संत ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि मन्दिर परमात्मा की प्रार्थना करने का पवित्र घर है। वहाँ की शांति, स्वच्छता और सौम्यता हृदय को अनायास सुकून देती है। उनके दिन भी धन्य हैं और रातें भी, जिनकी आँखें हर सुबह मन्दिर के घण्टनाद के साथ खुलती हैं और जो शयन से पूर्व प्रभु की दिव्य वाणी का पठन, श्रवण या मनन करते हैं। उन्होंने कहा कि सुबह-शाम पूजा-प्रार्थना के लिए उन्हें बैठना पड़ता है जो शेष समय में भगवान को भूल जाते हैं। अपने हृदय में भगवान की हर पल स्मृति रखना ही सच्ची भक्ति है। हम अपना हर कार्य इस तरह संपादित करें जिससे हमारा हर कर्म परमात्मा को अर्पित किया जाने वाला पवित्र अघ्र्य बन जाए।
उन्होंने कहा कि मन्दिर-मस्जिद पर माईक लगाकर लोगों को तो प्रार्थना सुनाई जा सकती है, परन्तु प्रभु के श्रीचरण तक अपनी प्रार्थना के भाव पहुँचाने के लिए हृदय में प्रवेश पाना होता है, जहाँ कि परमात्मा का साम्राज्य है। समूह में भजनों को गाया जाता है और अकेले व एकान्त में उन्हें गुनगुनाया जाता है। गुनगुनाने का आनन्द, गाने के आनन्द से सौ गुना अधिक होता है। भजन की ताकत शब्द या बोल में नहीं, हृदय की उसके साथ जुडने वाली भावना में है। हृदय की भावना प्रार्थना और पुकार लिये हुए जब आँखों से निर्झरित होती है तो वह दशा ही सच्चा भजन कहलाती है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर, अल्लाह या गॉड – ये केवल शब्दों का फर्क है। उस परम शक्ति को शब्द-रहित होकर देखें तो सर्वोच्च सत्ता में कोई फर्क नहीं है। प्रार्थना पहला चरण है और ध्यान अगला। प्रार्थना में हम प्रभु से बातें करते हैं, जबकि ध्यान में प्रभु हमसे। उन्होंने कहा कि अंतरात्मा की आवाज प्रभु का संदेश है। हमें जीवन में वही करना चाहिए, जैसा करने के लिए प्रभु का संदेश और आदेश हो।
रविवार को बोरीवली में होंगे राष्ट्र-संतों के भव्य सत्संग और प्रवचन और प्रभु प्रसादम् का होगा शुभारंभ – अध्यक्ष पारस चपलोत और महामंत्री मनोज बनवट ने बताया कि राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज के दिव्य सत्संग एवं आध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन 7 अक्टूबर, रविवार को प्रातः 9.15 से 11 बजे तक मां मांगल्य भवन, योगी नगर सर्कल के पास, मेटरो ब्रिज पिल्लर 195 के सामने, लिंक रोड़, बोरीवली वेस्ट में होगा जिसमें संतप्रवर जीवन में कैसे आए खुशहाली कि हर दिन बन जाए दिवाली विषय पर संबोधन देंगे। प्रवचन के पश्चात कोरा केन्द्र मैदान 3 में दिव्य सत्संग समिति द्वारा प्रभु प्रसादम का शुभारंभ किया जाएगा जिसमें हर रविवार सुबह 11 से 12 बजे तक जरूरतमंद लोगों को भोजन प्रसादी का वितरण किया जाएगा। समिति ने सभी सत्संगप्रेमी और लाभार्थी परिवारों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया है।