Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

श्री गौतमस्वामी पूजन एवं सूरिमंत्र वंद्नावली का आयोजन संपन्न

श्री गौतमस्वामी पूजन एवं सूरिमंत्र वंद्नावली का आयोजन संपन्न

किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वावधान में रविवार को गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के द्वितीय सूरिमंत्र पीठिका एवं साध्वी हितार्थरत्नाश्रीजी के भद्रतप की पूर्णाहुति के उपलक्ष्य में श्री गौतमस्वामी पूजन एवं सूरिमंत्र वंद्नावली का आयोजन किया गया। इस आयोजन के लाभार्थी गजेश निपा हीरालाल शाह परिवार थे। कार्यक्रम में धीरज निब्जिया ने संगीत की मार्मिक प्रस्तुति दी। इस मौके पर आचार्यश्री ने कहा कि जिस प्रकार भावों में उपशम भाव, तप में आयंबिल, व्रत में ब्रह्मचर्य, आराधना में सर्वविरति श्रेष्ठ हैं, उसी तरह मंत्रों में नवकार मंत्र और सूरिमंत्र एवं गुरु में गौतम स्वामी श्रेष्ठ है। सूरिमंत्र गौतम स्वामी के पूर्वकाल से चला आ रहा है।

उन्होंने कहा जाप पहले स्वयं की भूमिका और फिर जाप की भूमिका बनाकर करना चाहिए। ज्ञानी कहते हैं तू तेरी भूमिका बना, फिर जाप के लिए भूमिका बना। स्वयं की भूमिका का मतलब स्वयं में रहे हुए कषायों को निर्मल करना है। जाप के पहले मिथ्यात्व, आहारसंज्ञा आदि कषायों को दूर करना है। मैत्री, करुणा, प्रमोद, माध्यस्थ, इन चार भावना को जीवन में जोड़ना है, तब ही आपके कषाय धीरे-धीरे मंद पड़ेंगे और आप जाप कर पाएंगे।

उन्होंने कहा विनय संपन्नता, श्रद्धा चातुर्य, पुण्य का माधुर्य, प्रवचन का सौंदर्य, शिष्य वैभव आदि गौतम स्वामी के प्रमुख गुण थे। उन्होंने कहा मैत्री हरेक के प्रति होनी चाहिए, विशेषकर जिनके साथ अनबन हो। उन्होंने कहा ग्रंथ पढ़ना आसान है, ग्रंथि को तोड़ना कठिन है। इसीलिए साधु को निर्ग्रन्थ कहा गया है। उन्होंने कहा चिंतन आत्मबल बढ़ाता है, चिंता कर्मबल बढ़ाता है। चिंतन पर के कल्याण के लिए होता है और चिंता स्व के कल्याण के लिए होती है। उन्होंने कहा कार्य ऐसा करो कि दूसरे उसकी प्रशंसा करने में लग जाए, आपको स्वयं को प्रशंसा करने की आवश्यकता ही नहीं हो।

आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान के आचार्य गौतमस्वामी के प्रतिनिधि है। गौतमस्वामी के प्रति अहोभाव रखते हुए हमें आज पूजन करनी है। अहोभाव लाने के लिए उनके गुणों को ह्रदय में लाना होगा। गौतमस्वामी का दूसरा नाम अनंत लब्धिनिधान है। उनका नाम सब संप्रदायों द्वारा माना जाता है। वे सूरिमंत्र के मूल नायक बने हैं। सूरिमंत्र के सूत्रों में श्रुतशक्ति के बीजमंत्र रहे हुए हैं। जो सूत्र का स्वाध्याय अच्छा करते हैं, उनको वचनसिद्धि और गणधर पद का नाम कर्म मिलता हैं।

ज्ञानी कहते हैं कोई भी त्याग ज्ञान के बिना टिकता नहीं है। गुरुतत्व का अहोभाव अपने जीवन में आता है, तब ही प्रभु का साक्षात्कार होता है। हमें जीवन के व्यवहार के काम में दशांश सुकृत में देना चाहिए। गौतम स्वामी के जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि भूल का स्वीकार करना, पुण्य का अभिमान नहीं करना यानी नम्रता का गुण, बिना कारण विशिष्ट ज्ञान का उपयोग नहीं करना, गुरु का वचन अन्यथा नहीं लेना। उन्होंने कहा गुरु का वचन अपने लिए सबसे श्रेष्ठ प्रवचन है। इस दौरान चूलै जैन संघ की उपस्थिति में आचार्यश्री के शिष्य उपाध्याय अभ्युदयप्रभ विजयजी के अगले चातुर्मास की अनुमति प्रदान की गई।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar